नई दिल्ली : हमेशा से ही यह सवाल उठता रहा है कि समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी आदिवासी बाहर रहेंगे या नहीं, क्योंकि उनकी अपनी परंपराएं हैं, उसमें दखल देना ठीक नहीं है. इस पर केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि पूर्वोत्तर और देश के अन्य क्षेत्रों के आदिवासियों को प्रस्तावित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के दायरे से बाहर रखा जाएगा, ताकि वे अपनी परंपरा के अनुसार मुक्त रूप से जीवन जी सकें संघ से जुड़े वनवासी कल्याण आश्रम की ओर से आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का रुख स्पष्ट किया. रिजिजू ने कहा कि कुछ लोग इन दिनों सोशल मीडिया पर एक विचित्र माहौल बना रहे हैं, और केंद्र के खिलाफ एक विमर्श गढ़ रहे हैं, हालांकि, उन्होंने किसी का भी नाम नहीं लिया.
किरने रिजिजू ने कहा, केंद्रीय मंत्री होने के नाते मैं अपनी सरकार का रुख साझा करना चाहता हूं. हमारी सरकार और पार्टी संविधान के अनुसार देश में समान नागरिक संहिता लाने के बारे में सोच रही है. जब फौजदारी कानून सभी के लिए समान है , तो नागरिक कानून भी सभी के लिए समान क्यों नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों ने इस संबंध में काम शुरू कर दिया है. लेकिन, हमने स्पष्ट रूप से कहा है कि आदिवासियों को इससे छूट दी जाएगी. आदिवासियों को अपने तरीके से जीने की आजादी दी जाए। यह समान नागरिक संहिता अनुसूची 6, अनुसूची 5, पूर्वोत्तर और देश के अन्य आदिवासी इलाकों में लागू नहीं होगी. किरेन रिजिजू ने कहा, उन्होंने (नेताम) मुझे बताया कि वे कई बार संसदीय चुनाव जीते, लेकिन उन्हें सिर्फ राज्य मंत्री बनाया गया. वे अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे थे. केंद्रीय मंत्री ने देश में आदिवासियों के कल्याण और उत्थान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में किए गए कार्यों की सराहना की. उन्होंने कहा, मोदी सरकार ने इस देश में आदिवासियों के उत्थान के लिए जो कुछ किया है, उसके बारे में पहले कभी किसी ने सोचा भी नहीं था. रिजिजू ने कहा कि आज मोदी सरकार में उनको मिलाकर तीन कैबिनेट मंत्री और आदिवासी समुदाय से चार राज्य मंत्री हैँ. केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल के दौरान देश में आदिवासी आबादी के उत्थान के लिए किए गए कार्यों की सराहना की. उन्होंने कहा कि मोदी ने अपनी दूरदर्शिता से देश को एक नई दिशा दी है.
(स्रोत एक्सप्रेस मीडिया सर्विसेज)
संकलन: कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा।
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