झारखंड के आदिवासी : चेरो जनजाति

 


चेरो झारखंड की ऐसी एक जनजाति है. जिसने पलामू क्षेत्र में लंबे समय तक राज किया और आज वह रंक बन गई. 400 साल तक शासन चलाने वाले इस जनजाति समुदाय का राजा से रंक बनने का इतिहास जबरदस्त है. वर्तमान झारखंड में चेरो जनजाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में सूचीबद्ध है. चेरो को चेरन या चेरवा कहते हैं. पलामू में इन्हें "बारहहजारी " भी कहा जाता है. जैसे खरवार को " अठारह हजारी" से पुकारते हैं.  ऐसा कहने के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि जब भगवंत राय ने पहले परगाना पर विजय प्राप्त की थी,तब उनकी सेना में बारह हजार चेरो और आठरह हजार खरवार शामिल थे. इसी संख्या के आधार पर इनका नामकरण किया गया. 

पलामू की नदी और जंगली क्षेत्रों में रचे बसे चेरो  जनजाति  का गौरवशाली व समृद्धशाली इतिहास रहा है. कुछ इतिहासकारों ने चेरो राजवंश व उनके शासन में समृद्धि का इस तरह वया किया है :- 

 " धन- धन राजा मेदनिया, घर - घर बाजे मथानिया " 

सिर्फ यहीं दो पंक्तियां चेरो राजवंश की समृद्धि की गवाही देती है. लेकिन राजवंश में आपसी मतभेद और अशिक्षा के कारण चार सौ बर्ष में चरो आदिवासी राजवंश के सदस्य आज राजा से रंक बन गए हैं. एकीकृत बिहार से मध्य प्रदेश तक फैला राजवंश धीरे धीरे सिमटता चला गया. ब्रिटिश शासनकाल में सिर्फ यह राजवंश पलामू में सीमित रहा. इस सम्राज्य के शासक पहले राजा से जमींदार, जमींदार से किसान और अब किसान से बनिहार बन गए. आज स्थिति यह है कि चेरो जनजाति को सरकार ने संरक्षित की श्रेणी में रखा है. 

1585 ईस्वी में स्थापित हुआ था चेरो राजवंश :- 

चेरो राजवंश की स्थापना कैसे हुई, इसका इतिहास में स्पष्ट जिक्र नहीं है. लेकिन अंग्रेज इतिहासकारों की मानें तो वर्ष 1613 ईस्वी में राजवंश की स्थापना की गई थी. वहीं, मुगलों के लिखित इतिहास में चेरो राजवंश का आरंभ 1585 ईस्वी में बाताया गया है. चेरो राजवंश के इतिहासकार राजेश्वर सिंह  की मानें तो अंग्रेज द्वारा लिखित  इतिहास अधिक तथ्यात्मक है.अन्य इतिहासकारों ने भी अंग्रेजों के लिखित इतिहास को सही माना है. कभी मुगलों की सेना के दांत खट्टे करने वाले वर्तमान में चेरो जनजाति की। 90 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे बसर कर रही है. 

भगवंत राय ने रखी थी चेरो  सम्राज्य की नींव :- 

इतिहासकार राजेश्वर सिंह बताते हैं, कि बर्ष 1613 ईस्वी में भगवंत राय ने चेरो राजवंश की नींव रखी थी. वर्तमान में पलामू जिले के तरहसी प्रखंड के अमानत नदी के किनारे मानगढ़ में भगवंत राय ने चेरो राजवंश की शुरुआत की थी. भगवंत राय ने राजा मान सिंह के परिवार की हत्या कर अपना शासन स्थापित किया था. आज यह साम्राज्य खंडहर हो चुका है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इसके जीर्णोद्धार को लेकर काम कर रही है. 

चेरो राजवंश की स्थापना से लेकर अब तक की वंशज :- 

राजवंश के शासक का नाम व कार्यकाल 

1. भगवंत राय  (1585 ई० से 1605 ई० तक ) 

2. अनंत राय  (1605 ई० से 1612 ई० तक) 

3. सहबल राय ( 1612 ई० से 1627 ई० तक) 

4., प्रताप राय ( 1627 ई० से 1637 ई० तक) 

5. भूपल राय ( 1637 ई० से 1657 ई० तक) 

6. मेदिनी राय ( 1658 ई० से 1674 ई० तक) 

7. रुद्र राय ( ( 1674 ई० से 1680 ई० तक) 

8. दुर्गा पाल राय ( 1680 ई० से 1697 ई० तक) 

9. साहब राय ( 1697 ई० से 1716 ई० तक) 

10. ऱजीत राज ( 1716 ई० 1722 ई० तक ) 

11. जय किसान राय ( 1722 ई० से 1770 ई० तक) 

12. मनजीत राय ( 1770 ई० से 1771ई० तक ) 

13. गोपाल राय ( 1771 ई० 1777 ई० तक) 

14. गजराज राय ( 1777 ई० से  1780 ई० तक )

15. बसंत राय ( 1780 ई० से 1783 ई ० तक ) 

चूड़ामन राय ,( 1783 ई० से 1813 ई० तक ) 

चेरो जनजाति की उत्पत्ति : 

चेरो जनजाति की उत्पत्ति को लेकर एक किवदंती भी प्रचलित है. बुंदेलखंड के राजा की एकमात्र कन्या थी, जिसकी कुंडली देखकर किसी ब्राह्मण ने बताया कि उसकी शादी किसी मुनि से होगी. यह जानकर राजा अपनी पुत्री को साथ लेकर मन में यह संकल्प करके चले कि जिस मुन्नी से सबसे प्रथम भेंट होगी, उसीको कन्या सौंप देंगे, कुमायूं से गुजरते हुए उन्हें एक टीला  दिखाई दिया, टीला एक तपस्या रति मुनि ने चारों ओर घेरकर बाल्मीकियों ने बना दिया था, राजा ने टीले को साफ कर मुनि को बाहर निकाला और अपनी पुत्री को उन्हें सौंप दिया, इसी दंपति से चेरो क्या चौहान वंशी राजपूतों की उत्पत्ति से हुई, यह अपने को चंद्रवंशी क्षत्रिय कहते हैं, लेकिन यह आदिवासी कैसे हो गए, इसकी जानकारी नहीं है. 

(सौजन्य :- दैनिक जागरण) ।

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