आइए जानते हैं झारखंड के परंपरागत खेल

 


झारखंड के जनजातीय इलाकों में लगने वाले ग्रामीण हाट-बाजार के अलावा कई जगहों पर परंपरागत खेल बेहद लोकप्रिय है. हालांकि समय के अनुसार इसमें काफी बदलाव आ गया है. माना जाता है कि मुर्गा लड़ाई आदिवासी समाज की संस्कृति का एक अभिन्न अंग है. है पूर्व में इसका आयोजन मनोरंजन के लिए किया जाता था. इसी प्रकार मनोरंजन के लिए जनी शिकार नमक खेल भी आदिवासी समाज में लोकप्रिय रहा है. इसमें आदिवासी समाज जानवरों का शिकार करते हैं और इसआयोजन का मनोरंजनपूर्ण आनंद लेते हैं. आदिवासी समाज में लट्टू का खेल भंवरा नाम से, हॉकी को फोदा नाम से खेला जाता है. तीर धनुष का खेल, रुमाल छिपाने का खेल, लकड़ी और चमड़े से बने गुलेल से खेल, हथेली पर ताली मारने का चटपटा खेल, ऊंचे स्थान से फिसलने का घसरी खेल, गुड्डी उड़ाने का खेल, रस्सी में पत्थर या ढेला बांधकर दूर तक देखने का ढेलकुसी का खेल, यहां के आदिवासी समाज का अभिन्न अंग रहा है. झारखंड के विलुप्त खेलों में बित्ती है, जिसे गुल्ली डंडा का प्रतिरूप का सकते हैं. या क्रिकेट की तरह ही खेला जाता है. भित्ती के भी अनेक प्रकार है, जो निम्नवत है :  बित्ती :- एक जमाने में झारखंड के युवा में बित्ती खेल का जबरदस्त उत्साह था. यह क्रिकेट का झारखंडी स्वरूप है. इसमें रन संख्या बनाने की के समान खिलाड़ियों कोरी यानी 20 की संख्या को बढ़ाने का प्रयास करते हैं. कभी-कभी तो बित्ती का खेल खेलते हुए खिलाड़ी एक गांव से दूसरे गांव तक पहुंच जाते थे और हराने वाले खिलाड़ी या दल को वहां से मूल खेल स्थान तक बित्ती खिलाते हुए लौटना पड़ता था. इसमें सही निशान पर मारने, गिली को मरने से चुकने, दिल्ली को कितनी बार बिना गिराए मार सकते हैं, इस बात का प्रदर्शन किया जाता था. इसमें दौड़ की क्षमता बढ़ाने का अच्छा खेल है.

ताड़ी बित्ती:- ताड़ी बित्ती के खेल में नुकीली बित्ती के स्थान पर दो इंच का सीधा कटा डंडे का टुकड़ा होता है. मारने वाला डंडा वही सवा हाथ का होता है. इसमें सात की संख्या में एक पुल्ली या रन होता है. इस साथ संख्या को एड़ी, तूड़ी,तिड़ी, चौड़ी,चंपा,शेख,सुदेश नाम से गिना जाता है. इसमें गल्ली के गिरने की जगह से डंडे से घुमाते हुए खेल के आरंभ स्थल तक नापते हैं. इस खेल का एक रोचक पहलू यह है कि यदि  नापते हुए आरंभ स्थल के पहुंचने तक अंतिम संख्या एड़ी हुआ तो पैर के पंच के ऊपर गिली को रखकर पैर से उछालते हैं. और डंडे से गिली को मारते है. यहां भी विपक्षी दल गिली को कैच करने की कोशिश करते हैं. 

लगंड बित्ती: - यह मूलतः लड़कियों का खेल है. यह प्रायः आंगन, मैदान, आंखड़ा,आदि में दो कतार में सात सात खाने बनाते हैं. खेल आरंभ में मीर,दूज,तीज, क्रमशः कहा जाता है. जो मीर पहला कहती हैं. वह पहले फिर तीज इसी क्रम से खेती है. और अधिक से अधिक खाने जीतने का प्रयास करती है. 

हादा पोटा या ठेंगा उटकवइल :- यह चारवाहे का बर्षा काल का खेल है. जो चारागाह मैदान में खेला जाता है. इस खेल में एक लड़के के डंडे को अपने अपने डंडे से हुटक- हुटक कर दूर फेंकते जाते हैं. गिरा हुआ डंडा वाला इसी बीच बाकी को छूता है. लोग उसके चुने के पूर्व हां हादा पोटा कह कर घास या पत्थर या उसके किसी वस्तु जिसका निर्धारण पहले कर लिया जाता है पर अपने डंडे की नोक को रख देते हैं. जो लड़का रख नहीं पाता है, उसे वह लड़का छू देता है.तब उस लड़के को जमीन पर डंडा हुटकाने के लिए रखा जाता है. 


Post a Comment

1 Comments