इतिहास से: संताल लेबर कॉर्प्स नामक विशेष कंपनी में शामिल होकर संतलों ने प्रथम विश्व युद्ध में योगदान दिया था



आज से 111 साल पहले जब प्रथम विश्व युद्ध की घोषणा 28 जुलाई को हुई तो ब्रिटिश साम्राज्य ने अपने अधीन में जितने भी देश थे, सभी देशों में सैनिक एवं श्रमिक भर्ती का अभियान चलाया. इस अभियान को भी भारत के गांव-गांव में प्रचार प्रसार किया गया और सभी जगह से भारी संख्या में युवाओं ने युद्ध में हिस्सा लेने के लिए अपना नाम दर्ज करवाया.  इस युद्ध में हिस्सा लेने लेने के लिए संताल परगना के संतालों ने भी खुशी-खुशी अपना नाम दर्ज करवाया. चूंकि संताल मिट्टी और पेड़ काटने में माहिर होते हैं, बाकायदा उनके लिए ‘संताल लेबर कॉर्प्स’ नामक विशेष कंपनी बनाई गई ताकि इसमें अधिक से अधिक संख्या में संतालों की भागीदारी हो सके. इसके तहत चार संताल लेबर  कंपनियां बनाई गई थी.

यहां के संतालों के अलावा दूसरे आदिवासियों को इंडियन लेबर कॉर्प्स के तहत युद्ध में भेजा गया. संताल परगना के राजमहल, बरहेट, गोड्डा, दुमका, काठीकुंड, महेशपुर, आमड़ापड़ा एवं पाकुड़ के संताल पुरुषों ने इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. इसके अलावा छोटानागपुर के उरांव, मुंडा, खड़िया एवं दूसरे आदिवासियों ने भी भाग लिया था. इस युद्ध में राजमहल पहाड़ के पहाड़िया आदिम जनजातियों ने भी हिस्सा लिया था. संताल श्रमिकों को सैनिकों के साथ विश्व के सम्पूर्ण देशों में पूर्वी अफ्रीका और पश्चिमी मोर्चे पर जर्मन ऑटोमन और तुर्क साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई क्षेत्र में भेजा गया था.  इसके अलावा संतालों ने मिस्र, फ्रांस और बेल्जियम में भी बड़े पराक्रम के साथ सैनिकों के साथ मोर्चा संभाला. 

लेबर कॉर्प्स के तहत जो श्रमिक युद्ध में भेजे गए थे, असल में वे युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में सैनिकों के सहयोग जैसे युद्ध के समानों को जहाजों, ट्रकों पर लादना और उतरना, घर बनाना, सड़क का निर्माण करना, बांध बनाना, काठ के सामान बनाना, मालवा हटाना , गड्ढा खोदना इत्यादि कामों में लगाया जाता था.

इस महान युद्ध में लगभग 800 से भी ज्यादा संतालों की जान गई थी और कुछ हमेशा-हमेशा के लिए लापता हो गए थे. इस लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए इंडियन रेलवे डिपार्टमेंट में काम कर रहे संताल भी गए थे. जिसमें में से लगभग 13 संताल युद्ध में मारे गए. युद्ध में मरे गए संतालों की याद में दुनिया के विभिन्न कॉमनवेल्थ मेमोरियल वॉर ग्रेव में स्थित उनके सम्मान में प्रतीक चिन्ह के रूप में पत्थर गड़ा गया है और उसमें नाम के साथ  कंपनी का नाम और मृत्यु की तिथि अंकित हुआ है जिसे आज भी देखा जा सकता है. इसके अलावा लिखित रूप में जो अब डिजिटलाइज हो गया है, में उनके नाम, पिता का नाम, गांव का नाम, योगदान की तिथि, मृत्यु की  तिथि इत्यादि को संरक्षित किया गया है.

लेखन/ संकलन: महेंद्र बेसरा ‘बेपारी’,  संताल परगना, दुमका।

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