जादोपटिया झारखंड की प्राचीन परंपरा लोक चित्रकला शैली हैं, जिसका संबंध संताल आदिवासी समाज की लौकिक एवं पारलौकिक क्रियाओं, धार्मिक एवं सामाजिक मिथकों से मिथकों से है. वर्तमान में यह लुप्तप्राय हो चुकी. जादोपटिया पटचित्र परंपरा की कला है. जिसमें मूलतः नौ विषयों को पंपों पर चित्रित किया जाता है.ये पट कागज या पुराने कपड़ों के होते हैं. जिसकी लंबाई 16 से 22 फीट तक होती हैं. कालांतर में पटों की यह लंबाई कम होती गई. प्रत्येक पट पर एक विषय के चित्रों को अंकित किया जाता हैं. इसमें प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता है.वस्तुत: जादोपटिया दृश्य और प्रदर्शन दोनों कला की श्रेणी में आती है. पट पर चित्रित विषय की अपनी सांस्कृतिक पृष्टभूमि होती और पट को दिखाते समय कलाकार उसे गायन के रूप में प्रस्तुत करते हैं.
जादोपटिया चित्रशैली में जिन विषयों का श्रृंखलाबद्ध चित्रण किया जाता है, उनमें सृष्टि की उत्पत्ति, संताल समाज पर्व और त्योहार, लौकिक और पारलौकिक क्रियाएं, धार्मिक विश्वास और यमलोक की क्रियाओं की परिकल्पना होती है.
जादोपटिया का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण:- वस्तुत: जादोपटिया एक चित्रकला शैली हैं, जिसमें संताल संस्कृति के मिथकीय तत्वों और तथ्यों की रैखिक अभिव्यक्ति है. इसे चित्रकला के रूप में भी हम देख सकते हैं. संताल समाज का बिषय होने के कारण उस समाज के लिए इन चित्रों में अपनी सांस्कृतिक पृष्टभूमि या पहचान को देख पाना सहज है, किंतु संतालों से इतर समाज के लिए इसकी बोधगम्यता एवं प्रतीकात्मक विश्लेषण की आवश्यकता होती है.
निष्कर्षत: जदोपटिया पेंटिंग का विश्लेषणात्मक अध्ययन स्पष्ट करते हैं कि उपरी तौर पर यह चित्रों का रोल है,जो सामान्य लौकिक और पारलौकिक स्थितियों का प्रस्तुतिकरण मात्रा है. मगर गहराई के स्तर पर यह मानव के संतुलित सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवहार की अभिव्यक्ति है, जो संपूर्ण संस्कृति को परिधि से केंद्र तक देख पाती है. और जहां पिलचू हाड़ाम और पिलुचू बूढ़ी का चित्रात,ृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृ प्रदर्शन एवं अंडे ( जादोपटिया पेंटिंग का अवयव, संतालों के आदय माता-पिता के प्राकट्य का स्रोत) और हंस ( संतालों आदय माता-पिता के प्राकट्य का स्रोत) का चित्रात्मक प्रर्दशन संताल संस्कृति का उदय ही नहीं, मनुष्य के जीवन की निरंतरता को बतलाता है, वहीं दूसरी ओर यमराज ( जादोपटिया पेंटिंग का एक विषय) मनुष्य के सांस्कृतिक व्यवहार में सामाजिक पद्धति की अभिव्यक्ति है. जादोपटिया चित्रकला के सघन पक्ष जनजातीय समाज के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से संबंध है. जादोपटिया पेंटिंग के सांस्कृतिक मूल्यों को समझने के लिए इन अवयवों को समझना अनिवार्य है.
संकलन : कालीदास मुर्मू संपादक आदिवासी परिचर्चा।
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