क्या है पेसा (PESA) और क्यों था इसका इंतजार?
केंद्र सरकार ने 1996 में PESA कानून बनाया था ताकि संविधान की पांचवीं अनुसूची में शामिल आदिवासी क्षेत्रों में स्वशासन लागू किया जा सके. झारखंड राज्य बनने के 25 साल बाद अब इसकी नियमावली तैयार हुई है। सरल शब्दों में कहें तो, पेसा कानून का अर्थ है— "गांव में जनता का शासन।" यह कानून पारंपरिक ग्राम प्रधानों और ग्राम सभाओं को वे अधिकार वापस देता है जो अब तक प्रशासनिक अधिकारियों के पास सीमित थे.
नियमावली की 5 प्रमुख बातें: जो आम आदमी के जीवन को बदलेंगी
जमीन पर ग्राम सभा का पहरा: -
अब अनुसूचित क्षेत्रों (Scheduled Areas) में किसी भी विकास परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) करने से पहले ग्राम सभा की अनुमति अनिवार्य होगी. कोई भी बाहरी व्यक्ति या कंपनी बिना ग्रामीणों की सहमति के उनकी जमीन नहीं ले पाएगी.
प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन: -
लघु वनोपज (जैसे महुआ, इमली, पत्तियां), खनिज और जल निकायों पर अब ग्राम सभा का नियंत्रण होगा. इससे स्थानीय ग्रामीणों को अपने संसाधनों से आय बढ़ाने का सीधा मौका मिलेगा और बिचौलियों का अंत होगा.
सामाजिक न्याय और सुरक्षा: -
गांव में होने वाले छोटे-मोटे विवादों का निपटारा अब ग्राम सभा के स्तर पर ही संभव होगा. इसके अलावा, गांव में शराब की दुकानों के लाइसेंस देने या न देने का अधिकार भी अब ग्राम सभा के पास होगा.
सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: -
यह नियमावली आदिवासियों की पारंपरिक रूढ़ियों, परंपराओं और सांस्कृतिक पहचान को कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है. मांझी-परगना, मुंडा-मानकी जैसी पारंपरिक व्यवस्थाएं अब और सशक्त होंगी.
पलायन पर रोक और रोजगार: -
गांव में आने वाले प्रवासियों और बाहर जाने वाले मजदूरों का पंजीकरण अब ग्राम सभा करेगी। इससे मानव तस्करी पर लगाम लगेगी और स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन की योजनाएं ग्राम सभा खुद तय कर सकेगी.
विकास और विरासत का संतुलन: -
सरकार का यह कदम 'अबुआ राज' (अपना राज) की परिकल्पना को धरातल पर उतारने जैसा है. अक्सर देखा गया है कि बड़े उद्योगों के कारण आदिवासियों को अपनी जमीन से बेदखल होना पड़ता था. पेसा नियमावली 2025 यह सुनिश्चित करती है कि 'विकास' ग्रामीणों की 'सहमति' के बिना नहीं थोपा जाएगा.
संक्षेप में कहा जा सकता हैं कि झारखंड सरकार द्वारा पेसा नियमावली को मंजूरी देना केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति की शुरुआत है. यह कानून राज्य के 13 अधिसूचित जिलों के लाखों आदिवासियों और मूलवासियों को उनके 'जल, जंगल और जमीन' का असली मालिक बनाता है. हालांकि, इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि ग्राम सभा के सदस्य अपने अधिकारों के प्रति कितने जागरूक होते हैं और सरकारी तंत्र उनके निर्णयों का कितना सम्मान करता है.
निश्चित रूप से, 2025 का यह अंत झारखंड के ग्रामीण सशक्तीकरण के एक नए युग का आगाज है. अब झारखंड की पंचायतों में केवल वोट नहीं डलेंगे, बल्कि वहां से 'विकास की नीतियां' भी तय होंगी.
संकलन: कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा।

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