मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकने का प्रकरण: मुख्य न्यायाधीश का नहीं वल्कि संविधान और संविधान के निर्माता बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर का अपमान है

 


नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायधीश बीआर गवई पर जूता फेंकने की घटना पर उनकी बहन कीर्ति गवई ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। मुख्य न्यायाधीश गवई की बहन, कीर्ति ने इस घटना को व्यक्तिगत हमला नहीं, बल्कि भारत के संविधान पर हमला बताया है.

 अपने  संदेश में उन्होंने कहा कि जो सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया गवई पर हमला हुआ है. ये जो हमला हुआ वहां व्यक्तिगत लेवल पर नहीं है. ये हमला हमारे संविधान पर हमला है. उन्होंने कहा कि संविधान सबसे श्रेष्ठ है, और यह हमारा कर्तव्य बनता है कि हम हमारे संविधान को सुरक्षित रखें. उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे संविधान की रक्षा न केवल अपने लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी करें और उन्हें एक सुरक्षित भारत दें. उन्होंने विनती की कि जो भी हम आवाज उठाएंगे या जो भी हम काम करेंगे. वह हम संविधान के ढांचे के भीतर करें जो बाबा साहेब ने हमें दिया है. वहीं इसके पहले मुख्य न्यायाधीश गवई की मां ने भी हमले की निंदा की. उन्होंने कहा कि मैं सीजेआई पर फेंके गए जूते की निंदा करती हूं. उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान सभी को समान अधिकार देता है, लेकिन कुछ लोग कानून को अपने हाथ में लेकर ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जो भारत के प्रति अपमानजनक है और देश में अराजकता फैला सकता है.
  सुप्रीम  कोर्ट में राकेश  किशोर  नाम के एक  वकील ने  सीजेआई बीआर गवई पर जूता फेंकने की कोशिश  की थी. सुरक्षाकर्मियों  ने तुरंत उन्हें कोर्ट रूम से बाहर निकाल दिया था. वकील राकेश किशोर ने कहा कि वह जेल जाने को तैयार हैं, लेकिन उन्होंने अपने कृत्य के लिए माफी मांगने से इंकार दिया. इसके बाद में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कार्रवाई करते हुए राकेश किशोर का लाइसेंस रद्द कर दिया.

वहीं बिहार तेजस्वी प्रसाद यादव ने इस घटना  की कड़ी  निंदा  करते हुए  अपने एक्स  हेंडल  पर लिखा - सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंका गया. यह हमारे लोकतांत्रिक और न्यायिक इतिहास की एक शर्मनाक घटना है. जब देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर आसीन व्यक्ति को न्यायालय में ही इस तरह के अपमान का सामना करना पड़े, तो यह गंभीर चिंता का विषय है. 2014 के बाद जिस तरीके से राजकीय संरक्षण में विभिन्न-विभिन्न माध्यमों से देश में घृणा और हिंसा को नॉर्मलाइज किया गया है यह उसका दुष्परिणाम है.

क्या दलित समुदाय से आने वाले और संविधान की भावना का पालन करने वाले व्यक्ति भी संवैधानिक पदों पर सुरक्षित नहीं हैं? यह जूता देश के मुख्य न्यायाधीश पर नहीं बल्कि संविधान और संविधान के शिल्पकार हमारे पूजनीय बाबा साहेब अंबेडकर पर फेंका गया है।.धर्म की आड़ में कुछ लोग अपना जहर बाहर फेंक रहे है.

संविधान व दलित विरोधी भाजपाई इस घटना पर चुप क्यों हैं? न्यायपालिका की गरिमा हमारे लोकतंत्र की रीढ़ है - इसे बचाना हम सभी की जिम्मेदारी है. 

संकलन: कालीदास मुर्मू संपादक आदिवासी परिचर्चा। 

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