ग्रामीण भारत में सामाजिक-आर्थिक न्याय मजबूतीकरण का आधार है पंचायत राज

 


भारत गांवों का देश हैं. भारत में प्राचीन काल से ही पंचायत राज व्यवस्था अस्तित्व में थी. लोग आपस में बैठकर गांव के विकास एवं विवादों को सामूहिकता निर्णय के साथ समाधान करते थे. आधुनिक भारत में पंचायत राज व्यवस्था के सफल प्रयोग से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती आई है. आजादी के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने "ग्राम स्वराज"  और प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू " पंचशील योजना" के द्वारा पंचायत राज व्यवस्था को स्थापित करने पर बल दिया था. आईय आइए आज  इस आलेख के माध्यम से भारत में पंचायत राज व्यवस्था के शुरुआत किस प्रकार से हुई,  संक्षिप्त में जानेंगे. 

भारत में प्राचीन काल से ही पंचायत राज व्यवस्था अस्तित्व में थी. ब्रिटिश शासन के दौरान लॉर्ड रिबन को भारत में स्थानीय स्वशासन को  लागू करने का श्रेय दिया जाता है. लॉर्ड रिपन ने 1882 में स्थानीय स्वशासन संबंधी प्रस्ताव पारित दिया था. परंतु आधुनिक भारत में स्वतंत्रता के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पंचायत राज व्यवस्था को सर ज़मीन पर उतारने का पहला प्रयास किए थे. उन्होंने इसके लिए राजस्थान के नागौर जिले के बगधरी गांव में 2 अक्टूबर 1959 को  पंचायत राज व्यवस्था की नींव रखी थी.

पंचायत राज व्यवस्था, ग्रामीण भारत की स्थानीय स्वशासन का महत्वपूर्ण आधार है. इस संस्था का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकसित करना तथा सामाजिक न्याय को मजबूत करना साथ ही साथ राज्य तथा केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना को लागू करना शामिल है. जिसमें 11वीं अनुसूची में उल्लेखित 29 बिषय भी है.पंचायत राज व्यवस्था के माध्यम से गांवों का स्वशासन चलाएं जाते हैं, इसके तीन इकाई हैं:- 

क) ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत ( ग्राम सभा) :- सभा किसी एक गांव या पंचायत का चुनाव करने वाले गांव के समूह की मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों से मिलकर बनी संस्था है. ग्राम स्तर पर जन कल्याण कार्यों और उनके रखरखाव की योजना बनाना और उन्हें पूरा करना इनका दायित्व है. ग्राम स्तर पर लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना, इसमें स्वास्थ्य शिक्षा भाईचारा जेंडर और जाति आधारित भेदभाव के संबंध में सामाजिक न्याय झगड़ों का निपटारा करना. 

ख) प्रखंड/ तालुका स्तर पर पंचायत समिति: यह समिति किसी एक पंचायत का चुनाव में सदस्य के रूप चयनित होने वाले समूह के द्वारा बनाई गई समिति है. इनका कार्यकाल 5 वर्ष के लिए होता है. यह पंचायत स्तर के जनकल्याण कार्यों का क्रियान्वयन इनके द्वारा किया जाता है. यह अपने पंचायत में सर्वेक्षण कर योजना की मांग करती है. 

ग) जिला/जनपद स्तर पर जिला परिषद :- जिले में कई परिषद सदस्य होते हैं. तथा इसका चयन त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव प्रणाली द्वारा किया जाता है. जो राज्य चुनाव आयोग के देख- रेख में चुनाव संपन्न होती हैं. जिला परिषद सदस्यों के कार्य अपने क्षेत्रों में जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू करना होता है. जिसमें वृद्धा पेंशन, स्वास्थ्य संबंधी योजनाएं. विशेषकर  महिलाओं जन कल्याण मुद्दे शामिल हैं. 

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वर्ष 1957 में योजना आयोग ( अब नीति आयोग)  द्वारा सामुदायिक विकास कार्यक्रम  1952 और राष्ट्रीय विस्तार सेवा कार्यक्रम 1953 के अध्ययन के लिए बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया गया. जिसने त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था को लागू करने का सुझाव दिया. वर्ष 1958 में राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिश स्वीकार की गई. तथा 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा देश में पहली बार त्रिस्तरीय पंचायत का उद्घाटन किया गया था.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है. बर्ष 1993 में 73वें तथा 74 वे संविधान संशोधन के द्वारा भारत में त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ है. 

संकलन: कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा।

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