संताल आदिवासी अपने ऐतिहासिक धरोहरों "जुग जाहेर" पारसनाथ पहाड़ के अस्तित्व को बचा पायेंगे !


कुछ दिनों से झारखंड प्रान्त के गिरीडीह जिला में अवस्थित पारसनाथ पहाड़ी प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में सुर्खियां बटोर रही है.इसकी आहट झारखंड के रास्ते  केन्द्रीय सरकार तक पहुंच गई है. दरअसल बात ये है, कि पारसनाथ पहाड़ी पर सदियों से आदिवासी संताल समाज का " जुग जाहेरथान" स्थापित है. बाद के दिनों में जैन धर्म के अनुयायियों तीर्थयात्रियों के रुप में आए और वे बस गए, धीरे धीरे इसमें मंदिर बनाएं जाने लगे. सब कुछ अपने तरीके के मुताबिक चल रही थी. परंतु केंद्र सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति ने पारसनाथ पर नया विवाद शुरू हो गया है. जिससे लेकर संताल समाज और जैन  समुदाय के बीच नया  विवाद पैदा हो गया है. जिस देशभर आदिवासी आंदोलित पर उतर आए हैं. 
क) विवाद का मुख्य कारण :- राज्य सरकार गिरिडीह के सम्मेद शिखर पारसनाथ पर्वत राज को धार्मिक पर्यटन क्षेत्र घोषित करने संबंधी पत्र केंद्र सरकार को भेजी थी, जिस पर केंद्रीय वन मंत्रालय ने सरकार की इस प्रस्ताव 2 को अगस्त 2019 को अनुशंसा की थी. तथा एक पत्र जारी कर पारसनाथ को वन्य जीव अभयारण्य घोषित कर पर्यावरण पर्यटन और अन्य गतिविधियों की अधिसूचना जारी की थी. जैन समुदाय द्वारा इस अधिसूचना को विलोपित या रद्द करने की मांग को लेकर देशभर में प्रदर्शन कर रहा है. जैन समाज के प्रतिनिधि पर्यटन स्थल की सूची में शिखर जी को शामिल करने से मांस मदिरा की बिक्री होने व क्षेत्र को पवित्रता भंग होने की आशंका बताया है.

वहीं दूसरी ओर संताल आदिवासी द्वारा पारसनाथ पर सदियों से जुग जाहेरगाढ स्थापित कर अपने इष्ट देवता मरांग बुरु के साथ अन्य देवी-देवताओं की बलि देने की प्रथा सदियों से प्रचलित है. आदिवासी समाज का कहना है की अगर इस पर प्रतिबंध लगा दिया जाए तो आदिवासी समाज की अस्मिता और पारंपरिक पूजा पद्धति समाप्त हो जाएगी. पारसनाथ पहाड़ पर  संताल आदिवासी समाज द्वारा बीर सेन्दरा और लॉ  वीर वैसी का प्रथा भी  प्रचलित है.
ख) संताल समुदाय  ने सरकार समाने लगी अपना पक्ष :- मांझी परगना महल धाड़ दिसोम के दिसोम परगाना बैजू मुर्म ने राज्य सरकार संबंधित मंत्रालय को एक पत्र लिखकर इस संबंध में  संताल आदिवासी का पक्ष रखते हुए कहा है कि हम आदिवासी संथाल समुदाय आदिकल से ही "मरांग बुरु" जो पारसनाथ पहाड़ झारखंड राज्य के गिरिडह जिले में स्थित है,को इष्ट देवता में से सबसे बड़ा देवताओं के रूप में मान्यता दिया गया है, और पहाड़ स्थित  "जुग जाहेरगाढ़ " निराकार इष्ट देव देवताओं के साथ आदिवासी पारंपरिक धार्मिक रीति रवाज के अनुसार पूजा पाठ तथा बलि अर्पित किया जाता है. यह जुग जाहेरगाढ़, पारसनाथ, मारांग बुरु दुनिया के आदिवासी और संताल समाज के धार्मिक आस्था का गढ़ रही है. साथी पारसनाथ पहाड़ में युगों से परंपरा के अनुरूप संताल आदिवासी द्वारा दिसुवा सेंदरा एवं सुताम टांडी पर तीन दिवसीय लॉ वीर वैसी का आयोजन होता आ रहा है. जिसको समाज ने सुप्रीम कोर्ट का मान्यता देती है. वर्तमान में जैन समुदाय के द्वारा अनावश्यक विवाद पैदा किया जा रहा है. इससे हमारे इष्ट देवता मारांगबुरू के अस्तित्व के साथ खिलवाड़ हो रहा है. हमारे आस्था के प्रतीक "जुग जाहेरगाढ़ " को जैन समुदाय द्वारा अतिक्रमण का कब्जा करना चाहते हैं, जो गलत एवं गैर कानूनी है. 

ग) संताल परम्परागत व्यवस्था, मांझी-परगाना, धार्मिक एवं जन संगठन का महाजुटान:- जुग जाहेरगाढ़ पारसनाथ की धार्मिक आस्था एवं अस्मिता को अक्षुण्णता को बनाए रखने के लिए 10 जनवरी को पीरटांड़ के मधुबन में महाजुटान का आयोजन किया गया. जिसमें संताल समाज के बुद्धिजीवी, शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता, कलाकारों, संस्कृति कर्मी एवं धर्म गुरुओं शामिल हुए. सभी ने एक स्वर में "मारांङ बुरु पारसनाथ पहाड" को जैन समुदाय द्वारा कब्जा किए जाने का घोर विरोध जताया. केन्द्र और राज्य सरकार को जिम्मेदारी 
है,कि वे इस मामले का हल निकाले. अन्यथा संताल आदिवासी समाज के द्वारा किसी वड़ी आन्दोलन करने में विवश होंगे. जिसका खमियाजा  सरकार को भुगतना होगा.

घ) संताल के पक्ष में सक्ष्य उपलब्ध:- इससे पूर्व 1911 में जैन धर्मावलंबियों द्वारा " जुग जाहेर माराङ बुरु " पारसनाथ पर कब्जा करने का प्रयास किया गया था. तत्कालीन हजारीबाग जिला के अंतर्गत पारसनाथ आते थे. उस समय भी  पारसनाथ को लेकर जैन समुदाय और आदिवासी के बीच विवाद हुई थी. विवाद इतना बढ़ गया था कि मामला कोर्ट में चला गया और संतालों की हुई थी. हार के पश्चात जैनियों ने PRIVY COUNCIL में अपील की थी. पर इंग्लैंड के PRIVY COUNCIL ने जैनियों के अपील को खारिज करते हुए संताल के पक्ष निर्णय दिया था.  पारसनाथ को संतालों के " जुग जाहेरगाढ़"  एवं वीर सेन्दरा को प्राचीन धरोहर बताकर जैनियों की अपील को नकार दिया था.  

कालीदास मुर्मू संपादक आदिवासी परिचर्चा।

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