ग्राम सभा - एक समृद्ध आदिवासी स्वशासन व्यवस्था

 


ग्राम सभा एक आदिवासी पारम्परिक शासन व्यवस्था है. आमतौर इस प्रकार की सभा गांव की अखड़ा में आयोजित किया जाता है. यहां गांव की विकास योजनाओं पर आम सहमति बनाई जाती है. आज़ादी के बाद  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ग्रामीण भारत के लिए " ग्राम स्वराज "  अवधारणा की नींव रखी थी.  संविधान के अनुच्छेद 244(1) और पंचायत राज अधिनियम के तहत् ग्राम सभा को विशेष शाक्ति प्राप्त है. हर स्तर के वे  सभी सरकारी योजना जो ग्राम में क्रियान्वयन होना है, बिना ग्राम सभा की सहमति से नहीं हो सकती. आइए  जानते हैं क्या है ग्राम सभा। ग्राम सभा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र ( पांचवीं अनुसूची क्षेत्र) में प्रति राजस्व ग्राम अथवा ग्राम टोला की शासन व प्रशासनिक व्यवस्था है. जिसमें परम्परागत रूप से गांव का मांझी, मानकी, मुण्डा, पड़हा राजा, डोकलो,सोहोर आदि पदेन व स्थायी अध्यक्ष होते हैं. ग्राम सभा के सचिव और कोषाध्यक्ष का चयन सर्व सम्मति से किया जाता है. जिससे स्वाशासन व्यवस्था का कुशल प्रबंधन व संचालन किया जा सके. ग्राम सभा की बैठक प्रत्येक माह, दो माह, अथवा तीन माह के अन्तराल में आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए. ग्राम सभा के वे सभी व्यक्ति ( महिला- पुरुष) सदस्य होते हैं. जिनकी उम्र 18 वर्ष से अधिक हो. अधिनियम तहत् जिनका नाम मतदाता सूची में दर्ज हो.1996 में पंचायत उपबंध अधिनियम ( अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार ) में ग्राम सभा सशक्तिकरण 2005, झारखण्ड पंचायती राज अधिनियम 2001 और 2003 में झारखण्ड ग्राम सभा ( गठन की प्रक्रिया एवं कामकाज का संचालन) नियमावली व अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन अधिकार 2005 शामिल हैं. भारतीय संविधान के अनुसार ग्राम सभा प्रशासन की बुनियादी इकाई है. इसके कार्य क्षेत्र और अधिकार में गांव की सीमा, विशेषताएं एवं पहचान करते हुए सीमा की प्राकृतिक संसाधनों यथा जल, जंगल व जीमन का संरक्षण  एवं उसका  सहजीविता के आधार पर प्रबंधन सुनिश्चित करना. गांव के विवादों- झगड़ों का निपटारा,भुमि, पशुधन, स्वास्थ्य, शिक्षा,पानी,श्रम आदि पर आम सहमति से प्रबंधन एवं भागीदारी सुनिश्चित करना. 

कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा।

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