झारखण्ड के प्राकृतिक वस्तुओं की बिक्री कर संवार रहे हैं जीवन



नई दिल्ली: इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर में झारखण्ड पवेलियन में चिरौंजी और इमली खूब पसंद की जा रही है | पवेलियन में लगाई गई स्टालों पर खूब भीड़ देखने को मिल रही है| जिसमें कई स्टालों पर लाह, इमली, चिरौंजी आदि की बिक्री की जा रही है| पवेलियन में लगी स्टाल उद्यम उत्थान समिति के राजेश कुमार के अनुसार अपनी स्टाल पर वो लाह, चिरौंजी और इमली उत्पाद बेच रहे है| जिसमें सबसे ज्यादा बिक्री इमली और चिरौंजी की हो रही है| झारखण्ड की चिरौंजी लोगों को खूब पसंद आ रही है| इमली के विषय में उन्होंने कहा की उनके द्वारा बिक्रय की जा रही इमली पूरी तरह से शुद्ध है| उसके उत्पादन में वो शुरू से ही पेड़ो के नीचे जाल लगा देते है| जिससे उसमें मिटटी लगने की कोई गुंजाइश नहीं रहती, बाद में उसके बीज को निकाल कर उसकी पैकिंग की जाती है| प्रगति मैदान में उनके पास कई व्यापारिक प्रस्ताव भी आया है| राजेश के अनुसार वो भारत सरकार के एम०एस०एम०ई०  मंत्रालय के प्रोजेक्ट SFURITI के अंतर्गत काम करते हैं| जिसमे उन्हें टेक्नीकल सपोर्ट फाउंडेशन ऑफ़ एम०एस०एम०ई०  झारखण्ड सपोर्ट रहता है| उनकी समिति में 500 आदिवासी महिलायें काम करती हैं| 

झारखण्ड लाह के उत्पादन में  पहले स्थान पर है| सबसे ज्यादा लाह खूँटी जिले में पाया जाता है| लाह का प्रतिवर्ष उत्पादन लगभग 110 टन है| जिससे प्रदेश के लगभग चार लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार प्राप्त होता है| लाह का निर्यात मलेशिया, ब्रिटेन, जापान, पाकिस्तान आदि देशों को किया जाता है| पवेलियन में लाह के कई उत्पादों की बिक्री की जा रही है| जिसमें चूड़ियां, चूडीदान, डोरबेल, मूर्तियाँ आदि शामिल है| प्रदेश चीरौंजी उत्पादन में देश में दूसरा स्थान रखता है| गुमला, सिमडेगा, चक्रधरपुर, चाईबासा आदि जिले चिरौंजी के लिए मशहूर है| चिरौंजी के उपयोग से इलनेस, डाइबिटीज, स्किन, डाइजेस्टिव प्रोब्लेम्स में  सहायता मिलती है| प्रदेश में प्रतिवर्ष लगभग 5000 टन चिरौंजी का उत्पादन होता है| और इस व्यवसाय में आठ लाख से अधिक लोग लगे हुए हैं| वहीं इमली गुमला, सिमडेगा, खूंटी आदि जिलों में अधिक पाई जाती है | जो की फरवरी से मार्च के बीच मिलती है|

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