राजमहल का माघी मेला: आदिवासी सनातन धर्म अनुयायी का सबसे बड़ा मेला ।


झारखंड राज्य के अन्तर्गत राजमहल के राजकीय माघी मेला पूर्णिमा मेला आदिवासी महाकुंभ के नाम से प्रसिद्ध है. इस अवसर पर हजारों की संख्या में आदिवासी एवं गैर-आदिवासी श्रद्धालु माघ माह की पूर्णिमा के अवसर पर गंगा स्नान करने पहुंचते हैं. संताल परगना सहित झारखंड के अन्य हिस्सों से और पश्चिम बंगाल,बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा,असम एवं नेपाल से भी हजारों संख्या में  लोग गंगा में डुबकी लगाने के लिए आते हैं. मां गंगा में स्नान करके लोग  अपने इष्ट देवता की पूजा-अर्चना करते हैं. आर्थिक द‌ष्टिकोण से यह मेला बहुत महत्वपूर्ण है. महीने भर चलने वाली इस मेला में विशेष रूप से लोहा,स्टील, कांस्य आदि धातुओं से निर्मित वस्तुएं की बिक्री खूब होती है. इससे राजकीय मेला का भी दर्जा प्राप्त है. 

मेला का धार्मिक महत्व:- माघी पूर्णिमा के अवसर पर  साफा होड़ आदिवासी श्रद्धालु गंगा नदी में  खड़े होकर गीले वस्त्र में पीतल के लोटा में जल भरकर माथे पर रखकर अपने  इष्टदेव को अर्घ्य तर्पण करते हुए दिखाई देंगे. इस मेले में साफा होड़ आदिवासी अपनी परंपरा व रीति-रिवाजों के साथ मारांङ बुरु,मां गंगा एवं अपने इष्टतम  देवताओं का  विशेष रूप से पूजे जाते हैं.  इस  धार्मिक अनुष्ठान के जानकारों के माने तो साफा होड़ द्वारा की जाने वाली पूजन पद्धति हड़प्पा सभ्यता और संस्कृति से मेल खाती है. सनातन धर्म के अनुयायी आदिवासी समुदाय का यह सबसे श्रेष्ठ मेला है. अपने अपने शिष्यों और अनुयायियों के साथ अलग-अलग स्थानों पर जान गुरु आखड़ा लगाते हैं. गुरु शिष्य परंपरा का ऐसा अनूठा संगम शायद कहीं दिखता है. शिष्यों के शारीरिक-मानसिक कष्टों का निवारण अपने विशिष्ट आध्यात्मिक शैली गुरुओं द्वारा की जाती है. आपको यहां आदिवासी संस्कृति का प्राचीन आध्यात्मिक झलक देखने को मिल जायेगा. सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करना एवं विशुद्ध सादा भोजन करना ही साफा होड़ समुदाय की जीवनधारा हैं. साफा होड़ समुदाय के लोग अपने गुरुओं के प्रति अपार श्रद्धा और विश्वास का भाव रखते हैं. 

कालीदास मुर्मू।


Post a Comment

0 Comments