आदिवासी हिन्दू धर्म का हिस्सा नहीं, सरना धर्म कोड की मांग न्यायसम्मत ।

 


पिछले दिनों विश्व हिन्दू परिषद के महामंत्री मिलिंद परांडे ने रांची में प्रेसवार्ता में आदिवासी धर्म "सरना कोड" पर विवादित बयान " आदिवासी समाज भी हिन्दू समाज का हिस्सा है"  देकर आदिवासी समाज के बीच आपसी भाईचारे व सद्भावना का ठेस पहुंचाने का काम किया है। आदिवासी समाज में  इस बायन पर कड़ी आपत्ति जताई जाने चाहिए थे। पर मेरे जानकारी में ऐसा कुछ नहीं हुआ,जो अत्यंत दु:खत है। झारखण्ड राज्य आदिवासी बहुल इलाकों में आते हैं और यहां सरना धर्म मानने लोगों की संख्या भी देश भर में सर्वाधिक है। विशेषकर संताल, उरांव,मुण्डा, हो, कोल, खड़िया ईत्यादि समुदाय में सरना धर्म को लेकर सर्वाधिक लोकप्रिय है। बताते चलें कि पिछले साल झारखण्ड सरकार ने सरना धर्म कोड की मांग को सही ठहराते हुए विधानसभा में पारित व अनुशंसा कर केंद्रीय सरकार को भेजा था। पर अभी तक केन्द्र सरकार इस पर चुप्पी साधे हुए है। इन सब के बावजूद विश्व हिन्दू परिषद के महामंत्री का बयान  गैर जिम्मेदाराना हैं। जो देश की अखंडता व मूल भावना को ठेस पहुंचाने का काम किया है। संविधान के अनुच्छेद-28 के अन्तर्गत मौलिक अधिकार का हनन करना है। इस तरह का गैर जिम्मेदाराना बयान देश के किसी भी व्यक्ति या संगठन के द्वारा किसी विशेष वर्ग के लिए दिया जाना न्यायगत उचित नहीं है । 


Post a Comment

0 Comments