जनजातीय प्रशासन का इतिहास

 


स्वतंत्रता के पूर्व सर्वप्रथम अंग्रेजी हुकूमत ने ही जनजातीय क्षेत्रों की समस्याओं का सामना करने का प्रयास किया। इन अंग्रेजों ने इस बात का भरसक प्रयत्न किया कि "आदिवासी" शेष भारतीय जनसमूह से अलग रहे, क्योंकि अंग्रेजी हुकूमत इन जनजातियों को राष्ट्रीय आंदोलन से अलग रखना चाहता था। इसका कारण था इन जनजातियों की शक्ति व क्षमता, जो किसी भी राष्ट्रीय आंदोलन के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकती थी। इन जनजातियों को अलग करके उनके रहने के स्थान को  प्रतिषिद्ध चित्र घोषित कर दिया गया। इस कारण प्रारंभिक स्थितियों में विदेशी शासन और इसाई मिशनरी ही इन क्षेत्रों में जा सकते थे।

1947 के बाद:-  स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जनजातीय कल्याण की भावना ने पूरे देश में व्यापक रूप से स्थान बनाया। 26 जनवरी 1950 की संविधान सभा में पारित विभिन्न प्रावधानों द्वारा इसकी पुष्टि हुई ।इन प्रावधानों से जनजातीय जनसंख्या को राष्ट्र की मुख्यधारा में मिलाने का कार्य को बल दिया। जनजातीय लोगों को भारत की शेष जनसंख्या के स्तर पर आने के उद्देश्य संविधान में इन जनजातियों को 10 वर्षों के लिए विशेष सुविधाएं तथा सुरक्षा प्रदान की गई। इस अवधि में अब तक हर बार 10 वर्षों की वृद्धि की जाती रही है।

जनजातियों की सुरक्षा तथा विकास के उद्देश्य 1951 ईस्वी में एक जनजातीय कल्याण विभाग की स्थापना की गई तथा संविधान के विभिन्न प्रावधानों के आधार पर प्रशासन की नवीन व्यवस्था सुनिश्चित की गई। अनुच्छेद 244 के अंतर्गत असम के अतिरिक्त सभी "जनजातीय क्षेत्रों " का प्रशासन पांचवी अनुसूची तथा आसाम के " जनजातीय क्षेत्रों" का प्रशासन छठवीं अनुसूची के अनुसार होगा।

जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन संबंधित राज्यों के भाग के रूप में होता है परंतु राज्यपाल को यह अधिकार है कि:- 

क) जनजातियों पर लागू होने वाले केंद्र तथा राज्य के नियमों की विधि में परिवर्तन कर सकते हैं।

ख) उनकी शांति तथा अच्छे प्रशासन के लिए नियम बनाना, उनके अधिकारों की रक्षा करना, बेकार भूमि के आवंटन में सहायक होने तथा साहूकारों से बचने में उनकी सहायता करना। इनबी नियमों को बनाते समय राज्यपाल को राज की जनजातीय सलाहकार समिति से सलाह लेना आवश्यक है। राष्ट्रपति के समक्ष इन सभी कार्यक्रमों की रिपोर्ट या केंद्र सरकार द्वारा निश्चित समय अवधि पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करना राज्यपाल का उत्तरदायित्व है।

पांचवी अनुसूची के अंतर्गत प्रशासन:- अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में पांचवी अनुसूची के अंतर्गत उत्तरदायित्व को केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच विभाजित कर दिया गया है। राज्य सरकारों को जनजातीय क्षेत्र के लिए अनुपयुक्त विधान ओं की जांच उनकी शांति तथा अच्छे प्रशासन के लिए विनियम की संरचना का कार्य दिया गया। राज्य की सीमा में रहने वाले सभी अनुसूचित जनजातियों के कल्याण तथा विकास के लिए विशेष योजनाओं को लागू करने का दायित्व भी राज्य सरकार का है। जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राज्य सरकार के लिए अतिरिक्त धनराशि प्रदान करने का उत्तरदायित्व केंद्र सरकार का है। किसी भी योजना के लागू करने के संबंध में राज्य सरकार को निर्देश देने तथा जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबद्ध प्राथमिकताओं की सूची बनाने में राज्य सरकार का मार्गदर्शन करने का अधिकार केंद्र सरकार को प्राप्त है।

अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और विकास के संबंध में केंद्रीय सरकार का कार्य अनुदान देने तक ही सीमित नहीं है। राज्य सरकारों का मार्गदर्शन करना तथा उन्हें समय समय पर उपयुक्त निर्देश देने का कार्य भी केंद्र सरकार का है। केंद्र सरकार की इस महत्वपूर्ण भूमिका का प्रावधान पांचवी अनुसूची के पैरा 3 तथा संविधान के अनुच्छेद 339(2) के अंतर्गत किया गया है। 

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