संतालों के उद्भव, विकास व सामाजिक संगठन

 

मुलत: संताल आदिवासी देश के प्राथमिक निवासी है। इस  लिहाज से संताल आदिवासी के पर्व- त्योहार, धार्मिक पूजा-पाठ व्यवस्था अति पुरातन संस्कृति है।यह एक सामाजिक- सांस्कृतिक विरासत की तरह प्रचलित है, जो पुरखों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता आ रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार संतालों के प्रथम वंशज या पूर्वज पिलचू हाड़ाम व पिलचू बूढ़ी के नाम से जाने जाते है। जो लाखों वर्ष पहले महाप्रलय के पश्चात् हंसों के एक जोड़े हंस और हंसली के अंडों से जन्म लिए थे। संताल उन्हीं के वंशज माने जाते है। इनका पैतृक जन्म भूमि हिहीड़ी-पिपीड़ी के नाम से विख्यात है। यह कथा उस युग की है, जब महाप्रलय के पश्चात् पृथ्वी का स्वरुप एक विशाल जल-थल का गोला के रुप में विद्यमान था। धीरे-धीरे महाप्रलय का वह विशालकाय जल समूह महासागर में परिणत हुआ।  युग व समय अपने धुरी के चक्र के साथ चलते गए । इसी कालचक्र के वेग में  पिलचू दाम्पत्य के वंशज भी बढ़ते चले गए। कालान्तर में संतालों के यह पूर्वज हिहीड़ी-पिपीड़ी से प्रवास कर खोज कमान, हाराता बुरु, तथा सांसाङ बेड़ा नामक स्थान से होते हुए हजारों वर्ष पूर्व पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों व देशों में वास करने लगे हैं।

संताल आदिवासी समुदाय पूर्व में अपने को मानमी के नाम से सम्बोधित करते थे। संताली शब्दकोश के माने तो मानमी शब्द का अर्थ है 'मनुष्य' है।  अर्थात यह मानमी या मनुष्य पृथ्वी के अन्य जीवों से भिन्न थे । कालान्तर में इस पृथ्वी पर  संतालों के अलावे दुसरे मानव जाति का भी उद्भव हुआ था। यह मानव प्रजाति हमारे पूर्वजों से अलग थे। कालान्तर में मानमी को ही ' होड़' के नाम से परिचित होने लगे थे। जिसका अर्थ मानव का उपजाति 'आदमी' है। मुलत: मानव या होड़ का अर्थ परिष्कृत मनुष्य है। यही होड़ आगे चलकर संताल के रूप में प्रतिष्ठित हुए। होड़ सभ्यता को  इतिहास में " सोसनोक युग " के नाम से विख्यात है। जो आज से 1700 बी.सी.से 1300 एंडी तक रहा। इसी काल में ये भारत वर्ष के वर्तमान झारखण्ड राज्य (छोटा नागपुर) का वृहद हिस्सा था। जहां संताल लगभग एक साथ 3000 वर्ष तक रहे। सोसनोक युग संतालों के स्वर्णिम युग था । जिससे अंग्रेजी में Period of Golden Civilization कहते है। इस युग में संताल अत्यंत सुखी-संपन्न और समृद्धि थे। इस भू-भाग पर संतालों का वर्चस्व था। उस समय यह प्रांत काफी धनी था। उस समय के लोगों मानवीय मूल्यों के गुणों से भरपूर ओत-प्रोत थे। मानवीय गुणों में वे ईमानदार, बुद्धिमान , मेहनती, सादगी स्वभाव एवं शांति प्रिय थे तथा भाई-चारा का संबंध स्थापित थे। वे अपने समाज को सुचारू रूप से के लिए मांझी मोड़ें होड़ व न्याय आदि के लिए मांझी परगना व्यवस्था को स्थापना की। घर-परिवार तथा गांव के मामले को निपटाने या न्याय दिलाने के लिए मांझी आखड़ा में फैसला करते थे। गांव के प्रशासनिक प्रमुख मांझी है, पर मोड़ें होड़ ( पंचों ) में ही शक्ति निहित होती है। गांव के आखड़े में जो सर्व सम्मति से पारित करते हैं, वहीं सर्वमान्य माना जाता है। यही प्रजातंत्र का मुल सिद्धांत गांव में परिष्कृत रुप से दिखने को लिलती है। विश्व भर में प्रजातंत्र के मुल सिद्धांत के सोत्र इस व्यवस्था से प्रेरित है। संताल गांव की पहचान स्वरुप गांव में एक मांझीथान, गांव के माध्यम में सामुदायिक आखड़ा व गांव के बाहर एकांत में जाहेरथान एवं शमशान घाट अवश्य होता है।

 कालीदास मुर्मू, संपादक, आदिवासी परिचर्चा।






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2 Comments

  1. Johar..
    Adi napay bujh na noka abuag historical Katha ku badai chu lagit te ...

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  2. It is really good and actually perfect for the
    santhal people

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