झारखंड आंदोलन के इतिहास में निर्णायक भूमिका निभाने वाले प्रमुख योद्धा


सुर्य, चंद्र, नक्षत्र और ग्रह अपने परिधि पर अनावरत रुप से गतिमान है. परन्तु इतिहास अपने कालखंड और समय के अनुसार बदलती हैं और भविष्य में बदलने की संभावना हमेशा बनीं रहीं हैं. भारत के संदर्भ में इतिहास को देखें तो यहां हजारों बर्ष से इतिहास को बदलते हुए देखा गया है. जिसका प्रसंग इतिहासकारों ने बहुत ही तार्किक और तथ्यपरक विश्लेषण किया है. जिसमें आज़ादी के पहले और आज़ादी के बाद के भारत का इतिहास समेटे हुए है. देश में झारखंड आंदोलन का समरगाथा भारतीय इतिहास का एक स्वार्मिण घटना है. जिसका नेतृत्व ये नायक—जयपाल सिंह मुंडा, निर्मल महतो, शिबू सोरेन और बिनोद बिहारी महतो, बागुन सोमराय एवं ए.के. राय थे. जिन्होंने संयुक्त रुप से झारखंड के आदिवासी व  मुलवासी के अधिकारों, अस्मिता को रक्षार्थ एवं अलग राज्य की मांग और सामाजिक न्याय के लिए निरंतर  संघर्ष करने वाले प्रमुख नेता थे:- 

1. जयपाल सिंह मुंडा (1903-1970) : - जयपाल सिंह मुंडा एक प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी, पत्रकार और आदिवासी नेता थे.  वे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र थे और भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी रहे. झारखंड आंदोलन में उनका योगदान अग्रणी था. उन्होंने आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग को मजबूत किया और 1938 में आदिवासी महासभा की स्थापना की, जो बाद में झारखंड पार्टी बनी. उन्होंने आदिवासी संस्कृति, भाषा और राजनीतिक पहचान को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जिससे केंद्रीय के भारत में आदिवासियों के लिए अलग होमलैंड की अवधारणा मजबूत हुई. वे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े रहे और आदिवासी अधिकारों के प्रतीक बने.

 2. अमर शहीद निर्मल महतो (1950-1987) : - निर्मल महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के संस्थापक अध्यक्ष और प्रमुख कार्यकर्ता थे. वे बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और मध्य प्रदेश के आदिवासी मूलवासी क्षेत्रों को मिलाकर अलग झारखंड राज्य बनाने के आंदोलन के अगुवा थे. उन्होंने कुर्मी और अन्य समुदायों को आंदोलन से जोड़ा तथा राज्य निर्माण के लिए जन-जागरण अभियान चलाया. दुर्भाग्यवश, 1987 में जामशेदपुर के चामरिया गेस्ट हाउस में उनकी हत्या हो गई. लेकिन  झारखंड आंदोलन में  उनका योगदान अतुलनीय है. आज भी जेएमएम के कार्यकर्ता उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देकर याद करते हैं.  वे आंदोलन के प्रारंभिक चरणों में एक प्रेरणास्रोत थे.

 3. दिसोम गुरु  शिबू सोरेन (1944-2025):- शिबू सोरेन, जिन्हें 'दिशोम गुरु' कहा जाता है.  झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और लंबे समय तक अध्यक्ष रहे. वे आदिवासी सुधारक और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने भूमि मालिकों के खिलाफ 'सारण न्याय' (लोक अदालतें) चलाकर आदिवासियों को न्याय दिलाया। झारखंड राज्य निर्माण में उनकी भूमिका केंद्रीय थी. उन्होंने संसद में दो दशकों तक अलग राज्य की मांग उठाई, 'धन कटाओ आंदोलन' जैसे जन-आंदोलनों का नेतृत्व किया और 2000 में झारखंड के गठन में महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे तीन बार (2005, 2008-2009, 2009-2010) झारखंड के मुख्यमंत्री बने. 2025 में उनका निधन हो गया, लेकिन वे आदिवासी पहचान के प्रतीक बने रहे.

 4. बिनोद बिहारी महतो (1925-1987) :- बिनोद बिहारी महतो शिवाजी समाज के संस्थापक और झारखंड मुक्ति मोर्चा के सह-संस्थापक थे. उन्होंने 1972 में जेएमएम की स्थापना में शिबू सोरेन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया तथा आंदोलन को जन-आधार प्रदान करने में अग्रणी भूमिका निभाई.  'नहर भराओ आंदोलन' जैसे अभियानों में वे आरोपी बने, जहां उन्होंने आदिवासियों मुलवासीयों की एकजुटता पर जोर दिया. लेकिन उनका योगदान झारखंड को अलग राज्य बनाने वाले सामूहिक संघर्ष का हिस्सा बना. वे सामाजिक न्याय और आदिवासी मूलवासी एकता के प्रतीक थे. 

5. कामरेड ए.के.राय (1935- 2019 ) : - कामरेड अरुण कुमार राय (ए.के. राय) का जन्म 15 जून 1935 को पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में हुआ था. वे एक प्रमुख मार्क्सवादी चिंतक, मजदूर नेता और झारखंड आंदोलन के स्तंभ थे. अपनी सादगी, वैचारिक स्पष्टता और मजदूर अधिकारों के लिए संघर्ष के कारण उन्हें 'राजनीतिक संत' कहा जाता था. एक इंजीनियर के रूप में अपनी नौकरी छोड़कर मजदूरों के लिए काम करने वाले ए.के. राय तीन बार सांसद और तीन बार विधायक रहे, लेकिन उन्होंने कभी पेंशन या सरकारी सुविधा नहीं ली. उन्होंने विनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अलग झारखंड राज्य के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया.

6. एन. ई. होरो (1925-2008) :-  एक आदिवासी राजनीतिज्ञ और झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता थे, जिन्होंने कई दशकों तक झारखंड पार्टी का नेतृत्व किया और एक अलग झारखंड राज्य की मांग के लिए संघर्ष किया. उन्होंने कई बार विधायक, सांसद और बिहार सरकार में मंत्री भी रहे. होरो एक पत्रकार और संपादक भी थे और उन्होंने झारखंड आंदोलन की दिशा और पहचान को मजबूत करने में  महत्वपूर्ण योगदान दिया.

                       मारांङ गोमके जयपाल सिंह मुंडा के निधन के बाद होरो ने झारखंड आंदोलन की कमान संभाली और झारखंड पार्टी का पुनर्गठन किया. उन्होंने बिहार, बंगाल, ओडिशा और मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों को मिलाकर वृहद झारखंड बनाने की मांग की और 1973 में इंदिरा गांधी को एक ज्ञापन भी सौंपा था.

7. बागुन सुम्ब्रुई(1924–2018):- एक आदिवासी राजनीतिज्ञ, झारखंड आंदोलन के अगुआ तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे। वह 1977 से 2004 तक पांच बार झारखंड के सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र के संसद रहे। वह एक गांधीवादी नेता थे और उन्हें "झारखंड के गांधी" के नाम से भी जाना जाता है. जयपाल सिंह मुंडा के निधन के बाद एन.ई. होरो और बागुन सुम्ब्रुई ने मिलकर झारखंड आंदोलन को नई ऊर्जा देने में महत्वपूर्ण भूमिका दी.

संकलन: कालीदास मुर्मू संपादक आदिवासी परिचर्चा।

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