पेसा कानून लागू नहीं होने तक राज्य में किसी भी लघु खनिज की नीलामी नहीं की जायेगी, हाईकोर्ट ने जताई कड़ी नाराजगी


रांची: झारखंड उच्च न्यायालय ने विगत दिन एक याचिका का सुनवाई करते हुए कहा है, कि जब तक अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभा को प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार देने वाले पेसा नियम के अधिसूचना नहीं हो जाती है. तब तक राज्य में किसी भी लघु खनिज की नीलामी नहीं की जायेगी. इस आदेश से फिलहाल जिलों में चल रही बालू घाटों की नीलामी रुक जायेगी. यह आदेश झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने दिया. यह मामला आदिवासी बुद्धिजीवी मंच द्वारा दायर अवमानना याचिका से जुड़ा है. मंच ने अदालत को बताया कि 29 जुलाई 2024 को दिए गए आदेश के बाबजूद राज्य सरकार ने पेसा नियम अधिसूचित नहीं किया. और बालू घाटों की नीलामी जारी रखीं. अदालत ने इसे गंभीरता लेते हुए सरकार को फटकार लगाई, सुनवाई के दौरान जब पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव श्री मनोज कुमार ने यह जिम्मेदारी मंत्री और मुख्यमंत्री पर डालने की बात कही,तो अदालत ने तीखा रुख अपनाते हुए पूछा क्या आप चाहते हैं कि हम मंत्री और मुख्यमंत्री को जेल भेज दें. यह आप कह रहे हैं ? कोर्ट ने स्पष्ट किया सरकार संविधान के 73 वें संशोधन के मनसा को ठेंगा दिखा रहे हैं. जबकि अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि एवं प्राकृतिक संसाधनों पर ग्रामसभा का अधिकार सुनिश्चित होना चाहिए. याचिकाकर्ता की ओर से कहा सरकार जानबूझकर नियमों को अधिसूचित करने में देरी कर रही हैं, ताकि इस बीच बालू घाटों व अन्य खनिज खादानों को दीर्घ कालीन नीलामी और पट्टों ज़ारी कर दिए जाए. 

क्या है पेसा कानून के नियम :  

पेसा कानून यानी पंचायत विस्तार (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम 1996,भारत सरकार द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों के आदिवासी समुदायों को स्वासन का अधिकार देने के लिए बनाया गया एक कानून है. यह अधिनियम ग्रामसभा को सशक्त बनाती हैं. जिससे वे अपने पारंपरिक अधिकार स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन और सामाजिक-आर्थिक विकास से जुड़े मामलों में निर्णय ले सकें. इसका मुख्य उद्देश्य आदिवासी समुदायों की परंपराओं रीति-रिवाजों और सामुदायिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण करना हैं. 

पेसा कानून में ग्रामसभा को दिए गए अधिकार: 

क) स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों पर गांव के लोगों का अधिकार होगा.

ख) जमीन, खनिज संपदा, लघु वनोपज की सुरक्षा और संरक्षण का अधिकार ग्राम पंचायत के पास होगा. 

ग) सामुदायिक वन प्रबंधन समिति का गठन भी ग्राम सभा द्वारा किया जायेगा. 

घ) बिना ग्राम सभा की सहमति के किसी भी प्रोजेक्ट/ परियोजना के लिए गांव की जमीन अधिग्रहण नहीं की जा सकेगी.

ङ) ग़ैर- जनजातीय व्यक्ति जमीन पर गलत तरीके से कब्जा नहीं कर सकेगा.

च) ग्राम सभा कब्जा की हुई जमीन फिर से आदिवासियों को वापस दिला सकेगा.

छ) ग्राम सभा की अनुशंसा के बिना खनिज के सर्वे, पट्टा देने या नीलामी नहीं होगी.

ज) खनिज पट्टा में स्वीकृति में अनुसूचित जनजाति के सदस्यों, सहकारी समितियों, एवं महिला आवेदकों को प्राथमिकता होगी. अन्य किसी बाहरी व्यक्ति/ समुदायों को नहीं मिलेगी.

संकलन:  श्री कालीदास मुर्मू, संपादक, आदिवासी परिचर्चा। 

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