जनजातीय आंदोलन: औपनिवेशिक शासकों के विरुद्ध आदिम जनजाति को संगठित किया था तेलंगा खड़िया


आदि काल से झारखंड संघर्ष की भूमि रहीं हैं. इस धरती की जन नायकों की अमर कथा इतिहास के पन्नो को सुशोभित किया है. 18वीं शताब्दी से झारखंड में संगठित रूप से जन आंदोलन का शुरुआती दौर माना जाता है. मुख्यत: इसका नेतृत्व कोई आदिवासी ही करता था. इन आदिवासियों ने अपने मुलभूत आवश्यकता जल,जंगल और जमीन की बतौर संरक्षक की भूमिका में रही. निरंतर आदिकाल से आजतक मुखौर के साथ संगठित एवं आंदोलित है. आइए इतिहास के पन्नों से ऐसा वीर योद्धा का अवलोकन करने का प्रयास करेंगे जो औपनिवेशिक हुकूमत को चुनौती दी और अपने रणनीतिक ज्ञान के कुशल नेतृत्व से गांव-गांव कर  जाकर  अंग्रेजों  के  खिलाफ आदिवासियों को एकजुट करने का किया.

 आदिवासी समुदायों में  देश की माटी और आजादी के लिए जीवन न्यौछावर  देने  वाले  वीर  शहीद  गुमनाम रह गये. इन्हीं  में   झारखंड राज्य में गुमला जिले के सिसई प्रखंड के मूरगू गांव के वीर शहीद तेलंगा खड़िया भी एक है.

गुमला जिला के मुरगू गांव में हुआ था जन्म : - वर्तमान झारखंड राज्य के गुमला के मुरगू गांव में ठुईयां खड़िया एवं पेतो खड़िया के घर में 9 फरवरी,1806 को जन्मे बचपन से ही कुशाग्रबुद्धि एवं  साहसी थे. वे अदम्य साहसी होने के साथ कुशल नेतृत्वकर्ता भी थे. वे वाल्यकाल से माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों से अंग्रेजों व जमींदारों के ज़ुल्म की काहनी सुन थे. यही वजह रही कि वे  अंग्रेजों को नंगी आंखों से देखना पसंद नहीं करते थे.  

आदिवासियों को अंग्रेजों के खिलाफ  लड़ाई के लिए संगठित किया :- वे अंग्रेजों के शोषण एवं अत्याचार को देखकर तेलंगा खड़िया को सहन नहीं हुआ. उन्होंने अदम्य साहस दिखाते हुए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई करनें के लिए आदिवासियों को संगठित किया. भुमि  पर चुंगी न देना और  स्वाशसन के मुद्दे पर  योजनाओं पर वे गांव गांव जाकर लोगों को एकजुट करने लगे. छोटा नागपुर के पूर्वी एवं दक्षिण इलाके के  प्रत्येक गांव गांव जाकर उन्होंने सभी वर्गों के लोगों के बीच समन्वय स्थापित किया था. तेलंगा खड़िया नेतृत्व का तत्कालीन कारण भूमि पर कर, आदिवासी महिलाओं पर शोषण व जमींदारी प्रथा का उन्मूलन मुख्य रुप से थे. 

दो साल तक जेल में  बंद रहे तेलंगा खड़िया :- अंग्रेजी शासकों द्वारा इस क्षेत्र के जनजातीय समुह के लोगों से मनमानी लगान वसूल करना अत्याचार का सबसे आम तरीका था. उस समय ब्रिटिश हुकूमत के शोषण से इस क्षेत्र की जनता उब चुकी थी. बल्क देशभर के लोगों में फुट थी. इसका व्यापक प्रभाव छोटा नागपुर के क्षेत्र में थे. जब इन क्षेत्रों में तेलंगा खड़िया द्वारा लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ गोलाबंद किये जाने की भनक ब्रिटिश शासकों को पता चला, तो तेलांग खड़िया को पकड़ने के लिए फरमान जारी कर दिया गया. एक दिन जब तेलंगा खड़िया बसिया थाना क्षेत्र के कुम्हारी गांव स्थित छुरी पंचायत की बैठक कर रहे थे. तब स्थानीय सूदखोरों, दलालों एवं जमींदारों ने उनके साथ लगा कर अंग्रेजों का सहयोग किया. और  अन्तत:  में तेलंगा खड़िया को गिरफ्तार करने में अंग्रेज सफल हो गए. और उन्हें सजा के लिए कलकत्ता जेल भेज दिया गया. दो बर्ष तक कलकत्ता जेल में सजा कटने के बाद तेलांग खड़िया वापस मुरगू गांव लौटे. फिर से वे अंग्रेजों प्रशासक के खिलाफ आदिवासियों को गोलाबंद करने का फैसला किया. इसी दौरान 23 अप्रैल 1880 को अंग्रेजों के साथ मुठभेड में तेलंगा खड़िया को गोली मारी थी. जिससे उन्हें वीरगति को प्राप्त की. 

कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा।

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