प्राकृतिक संतुलन में आदिवासी की भूमिका सर्वाधिक


आदिवासी समुदाय इस देश की धरती पर तब से रहते आए हैं जब इस देश की वर्तमान नक्शा भी अस्तित्व में नहीं था, यहां तक कि देश और राज्यों के वर्गीकरण भी नहीं। दुनिया का कोई भी कोना ऐसा नहीं है, जिसमें आदिवासी समुदाय न निवास करते हो। आदिवासी वही लोग हैं जो अपने अस्तित्व से लेकर अब तक जल जंगल और जमीन से गहरा संबंध बनाए रखते हैं और उनकी जीविका जंगल से ही चलती है। आदिवासियों का हजारों सालों से जंगल से रिश्ता रहा है।लेकिन ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं मिला है कि वह किसी वन संपदा और जीप संपदा को खत्म करने के लिए जिम्मेदार रहे हो। बल्कि आदिवासी समुदायों ने वन्य प्राणी और जंगलों को पनपने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जितना उन्होंने जंगल से लिया उसे कहीं जा ज्यादा दिया और उससे सा एक सहेज कर रखा है, क्योंकि यदि आदिवासी समुदाय ने वास्तव में जंगल और वन संपदा का अंधाधुन दहन किया होता तो आज हमारा अस्तित्व ही नहीं होता। अगर ऐसे ही होता तो जंगल और वन संपदा का अस्तित्व मिटने से मानव जाति  जीवन में प्रतिकूलता के कारण किस पृथ्वी से मिट गई होती, बल्कि सच्चाई यह है कि मानव जाति के इस पृथ्वी पर अस्तित्व में आने से लेकर आज तक आदिवासी समुदाय की वजह से ही दुनिया भर में फ्लोरा और फाॅना के फलने फूलने के लिए अनुकूल वातावरण रहता आया है

कई शोधों से इस तत्व की पुष्टि हो चुकी है कि आदिवासी ने जल जंगल और अपने बीच में एक प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में सदियों से महती भूमिका निभाई है। 

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