संताल वीरांगाना फूलो झानो मुर्मू पर शोध से ही सार्थक होगी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

 




संताल विद्रोह के नायक सिद्धो-कान्हू को आंदोलन करने के लिए प्रेरित करने में फुलमनी और झानोमनी मुर्मू की अहम भूमिका रही है। इतिहास में इन संताल बिरंगाना नारियों के कर्मकांड को उचित सम्मान नहीं मिला है। वर्ष 1855 ईस्वी में महाजनी शोषण, भूमि राजस्व की बेतहाशा वृद्धि एवं रेल लाइन के कार्य में अंग्रेज ठेकेदारों द्वारा संताल रमणीयों के ऊपर किए गए अत्याचार के विरोध इतिहास सिख विद्रोह का बिगुल सिद्धो-कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में फूंका गया था। गेजेटियर के अनुसार फुलमनी और झानोमनी सिद्धो-कान्हू की बहनें थीं। दोनों बहनों ने अंग्रेज ठेकेदारों के अत्याचार के विरोध अपने सहोदार भाइयों को  बदला लेने के लिए उग्र आंदोलन करने के लिए प्रेरित किया था। इन दोनों वीरांगना नारी के इतिहास को लेकर राज्य सरकार को शोध करने की जरूरत है। हालांकि राज्य सरकार ने उपराजधानी दुमका में मेडिकल कॉलेज का नाम इन दोनों वीरांगनाओं के नाम पर स्थापित किया है। पर इन आदिवासी वीरांगना नारी के महान कर्मकांड पर शोध कराकर ही अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन को सार्थक किया जा सकता है।

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