पूरी दुनिया से विलुप्त होती आदिवासी भाषाएं


 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 19569 मातृभाषा है। इनमें से 1369 नेशनलाइज्ड है। और 1474 अनक्लासिफाइड है।देश की लगभग 20000 इन भाषाओं और बोलियों को कई वर्गों में रखा गया है। जैसे Schedule, unscheduled, regional, mojor, minor, minority, tribal languages। लेकिन भाषा की कैटिगरी में सिर्फ 121 को ही रखा गया है। जिनमें से 22 to scheduled और  99 non Scheduled है। आठवीं अनुसूची में जो 32 भाषाएं schedule है। उनमें सिर्फ दो ही आदिवासी भाषाएं हैं। बोलो और संताली। जबकि 99 non scheduled भाषा में अधिगम आदिवासी भाषाएं हैं। भारत में लगभग 780 आदिवासी भाषाएं हैं, जो आज भी जीवित है और चिंता की बात है कि इनमें से करीब आ 700 आदिवासी भाषाएं तो नॉन शेड्यूल कैटिगरी में शामिल नहीं है। हमारी यह चिंता तब और बढ़ जाती है, जब यूनेस्को की " वर्ल्ड एलस ऑफ एनडेंजस लैंग्वेजेज " से हमें यह पता चलता है कि हमारे देश की 179 भाषाएं जल्दी खत्म हो जाने वाली है। 

आदिवासियों के लिए भाषा सिर्फ अपने विचारों को व्यक्त करने की आपसी संवाद का माध्यम नहीं है। हमारे लिए भाषा का मतलब दुनिया का वह ज्ञान जिससे हमारे पुरखों ने अर्जित किया प्रकृति के साथ जीने और रहने का तरीका क्या है।एक इंसान का दूसरे इंसान के साथ कैसे व्यवहार होना चाहिए, नदी, जंगल, पहाड़, धरती और पशु पक्षियों के साथ हमारा किस तरह का रिश्ता है, यह सब ज्ञान हमें अपनी भाषा के जरिए ही मिलती हैं। समाज, पर्यावरण,इतिहास और संस्कृति की पूरी समाज हमारे उन भाषाओं में है, जिनको नॉन शेड्यूल और अनक्लासिफाइड कहा जाता है। जयपाल सिंह मुंडा ने संविधान सभा में कहा था कि मुंडा और द्रविड़ आदिवासी भाषाओं को शेड्यूल लैंग्वेज में जरूर शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि आदिवासी भाषाओं में ही भारत का ज्ञान विज्ञान और इतिहास सुरक्षित है।


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