जानें भुमिज(सरदार) आदिवासी के खुटंकट्टी स्वशासन व्यवस्था


 अनादिकाल में प्राकृतिक जंगलों में आदिवासी समुदायों ने अपने हाथों से खुटंकट्टी पत्थर के कुल्हाड़ी औजार तैयार कर आवश्यकता केअनुरुप जंगल के पेड़ों को काटा और आग से जला कर साफ करके कृषि योग्य भूमि या जमीन तैयार किया और अपने निवास स्थान के ग्राम गणराज स्वशासन व्यवस्था स्थापित किया। वन भूमि में खेती जमीन और घर के गांव की सीमांकन तैयार कर काश्तकारी किया। प्राकृतिक जंगलों के बीच में वैसे भौगोलिक क्षेत्र का चयन किया जहां पर विरान व जंगल एवं झरने से बहता हुआ नदी के किनारे गांव के साथ खेती जमीन के सामने बस से ताकि भौगोलिक क्षेत्र की देखभाल की भी सुरक्षा हो सके। उसी गांव के सीमांकन के किनारे में अपने लिए समाजिक संस्कृति धार्मिक विरासत स्थल भी स्थापित किया।

जन्म संस्कार, मृत्यु संस्कार में खुटंकट्टी हाड़तोपा(मशन), हाड़रापा(सशान), जारगबाहा या  विददिरि,निशानदिरि गाड़नेका परम्परा आदिकाल से चली आ रही है। उसी आधार पर संस्कृतिक विरासत का भी अलग-अलग समय पर खूंटकट्टी स्थल रहा है। इसी के अनुरूप गांव के परंपरागत शासन व्यवस्था की संविधान बनी। परंतु यह संविधान लिखित ना होकर अलिखित या मौखिक के आधार पर संचलन होता आया है। भूमिज आदिवासी समाज में मौखिक या अलिखित संविधान परंपरागत स्वशासन व्यवस्था गांव की सामाजिक, आर्थिक ,राजनीतिक, भौगोलिक सीमांकन के भीतर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण संवर्धन करने की विशेष उत्तरदायित्व भूमिका रही है। मुढ़ा या सरदार, दिगार, नायके,घाटवाल,पायके,यह सभी खुटं कट्टी परंपरा स्वशासन व्यवस्था की महत्वपूर्ण पद है। इनके ऊपर संपूर्ण गांव का संचालन करने का जिम्मेदारी है।

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