कैसे शुरू हुई करम देवता की पूजा।

 


आदिकाल से ही आदिवासियों में " करमा पूजा" की परंपरा चली आ रही है। " करमा गोंसाय" की उपासना, विनती व नृत्य करना प्रकृति  की सबसे बड़ी उत्सव है। " करमा गोंसाय" के नाम पर आंखड़ा में कराम  की डाली स्थापित कर  उससे संबंधित नृत्य व संगीत  भादो मास की (लगभग सितम्बर में) एकादशी के दिन और कुछ स्थानों पर उसी के आसपास तिथियों में मनाया जाता है। " करमा या  कर्म " आदिवासियों की सबसे महत्वपूर्ण है। चलिए प्रकृति के पावन पर्व के धर्म कथा को सुनते हैं।

करमा और धरमा दो सगे भाई थे। करमा बड़ा था और वर्मा छोटा। दोनों अलग मनोवृति वाले थे। करमा कठोर मेहनत, समय की बचत, और धन की बचत पर विश्वास रखता था। उसका मुख्य  पेशा व्वयपार था। जबकि धरमा प्रेम, विनम्रता, पूजा धर्म , नैतिकता, सरलता, सामुहिकता पर विश्वास करता  था। उसका मुख्य पेशा कृषि था। 

एक बार व्यापार के सिलसिले में विदेश चला गया। व्यापर से उसने काफी धन अर्जित किया। फलत: वह घमंडी हो गया और अपने- आप अको  ताकतवर महसूस करने लगा। तब विदेश से वह अपने गांव घर  के लिए रवाना हुआ। अपार संपत्ति अर्जित करने के बाद वह गांव की सीमा पर अपने सहयोगियों के साथ विश्राम करने लगा। उसने अपने भाई धरमा को आने की सूचना दी, ताकि गांव की परिपाटी के अनुसार उसके स्वागत के लिए उसका भाई सीमा पर पहुंचे, परन्तु छोटा भाई धरमा उस समय अपने परिवार और गांव के लोगों के साथ पूजा-अर्चना में मशगूल था। अतः वह अपने भाई का स्वागत करने के लिए समयानुसार वहां पहुंच नहीं सका। इस पर करमा आग-बबूला हो गया और गुर्राता हुआ वह अपने घर पहुंचा। उसने धरमा के पूजा स्थल को नष्ट कर दिया और करम राजा को उखाड़ कर फेंकना चाहा। भाई धरमा तथा गांव के लोगों द्वारा कमजोरी विनती करने के बावजूद करमा ने देवता उखाड़ कर फेंक दिया। उसके इस व्यावहार से गांव के लोग बहुत दुःखी हुए और रोने चिल्लाने लगे, विलाप करने लगे। इसके बाद करमा पुनः गांव की सीमा पर पहुंचा, जहां उसकी कमाई हुई धन संपति रखी थी। वहां वह यह देखकर चाकित रह गया कि उसकी संपत्ति गायब थी। यह देखकर वह निराश और दुःखी मन से संपति की खोज करने लगा। संपत्ति नहीं मिलने पर उसने अपने सहयोगियों से सलाह मांगी। उन्होंने उसे करम राजा की पूजा-आराधना करने की सलाह दी। चुंकि वह करम राजा के निवास स्थान से परिचित नहीं था। इसलिए उसे सात समूंदर पार जाकर करम राजा को रोने को कह़ा गया। करमा देवता की खोज में निकल पड़ा। रास्ते में उसे जोरों की प्यासा लगी। वह पानी पीने के लिए तालाब पर पहुंचा तो उसके पानी में कीड़े भरे हुए थे। इसलिए वह पानी भी नहीं पी सका। उसे भुख लगी तो वह एक गूलर के पेड़ के पास गया, लेकिन गूलर के सभी फलों में कीड़े कुलबुला रहे थे। अतः वह फल नहीं खा सका। वह आगे बढ़ा तो देखा कि एक गाय अपने बच्चे को दुध पिला रही थी। उसने गाय को अपना दुखड़ा सुनाया तो गाय ने उसे दुध पीने की अनुमति दी, लेकिन जब वह गाय को दुहने लगा तो उसके तन से दूध बदले खून गिरने लगा। इससे वह दूध भी पी नहीं सका। आगे बढ़ने पर उसने देखा कि एक महिला चूड़ा कूट रही है।वह उसके पास पहुंचकर उसे बताया कि वह भूख से परेशान हैं। तब महिला ने उसे चूड़ा खाने को दिया, लेकिन चूड़े में कंकड़ और धूल ऐसे भरें पड़े थे कि वह का नहीं सका। वहां से वह आगे बढ़ा तो उसे एक घोड़ा दिखाई पड़ा। उसने घोड़े से अपनी परेशानी बताकर मदद मांगी, लेकिन घोड़ा भी वह से भाग निकला। हताश निराशा होकर वह आगे बढ़ा तो एक नदी मिली। नदी के बीचों-बीच एक मगरमच्छ आ गया। उसने करमा को अपनी पीठ पर बैठाकर करम देव के पास पहुंच दिया। करम देवता उसको परीक्षा में सफल देखकर प्रसन्न हो उठेऔर वरदान दे दिया। साथ ही करम डाली की पूजा करने की सलाह दी। वहीं से करम देव की पूजा शुरू हो गई।








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