जमीन,भाषा व संस्कृति पर निर्भर है, आदिवासियों की अस्मिता।

 


इतिहास के पन्नों को पलटने यह बात स्पष्ट होती है, कि आदिवासी प्रकृति से ही संघर्षशील प्रवृत्ति के हैं। संघर्ष के बिना इस समुदाय के जीवन की कल्पना करना उचित नहीं होगा। इनके जीवन में कभी भी चैन की सांस नजर नहीं आती है। अपने को बचाएं रखने के लिए यह समुदाय जितना संघर्षरत रहा है, शायद ही दुनिया का कोई समुदाय करता हो, यह विडंबना ही कहा जा सकता है, कि भारत समेत दुनिया में आज भी आदिवासी अपनी अस्मिता व अस्तित्व की रक्षा के लिए सड़क से सदन तक अपनी आवाज बुलंद करते नजर आते हैं। वर्तमान परिस्थिति में जिस तरह से आदिवासियों को समाप्त  करने की साज़िश जा रही है। इससे एक दिन भी आदिवासी संघर्ष के बैगर नही रह सकते हैं। वर्तमान विकसित समाज द्वारा इन्हें समाप्त करने के लिए अनेक तरह के प्रयास किए गए हैं। लेकिन अब तक सफलता हाथ नहीं लगी है। इसकी सबसे बड़ी बजह आदिवासी आज भी अपनी भाषा, संस्कृति,जल,जंगल व ज़मीन के साथ जुड़ा होना। प्रशासन, पूंजीपतियों और आदिवासी विरोधी तंत्र यह पता लगाने की कोशिश की आखिर आदिवासी समुदाय आज भी सुरक्षित  है। जब उन्हें पता चला कि आदिवासियों की अस्मिता जमीन से जुड़े हुए हैं, तब जमीन से वेदखल करने के बारे उपाय लगा दिए गए हैं। इसके तहत् जमीन से बेदखल के लिए कई कानून लाये गये है। इनमें भूमि-अधिग्रहण अध्यादेश 2015भी शामिल है।

आईये, इस संबंध में पर चर्चा करते हैं, कि  किस तरह से आदिवासी दर्शन  में भाषा , संस्कृति व जमीन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। हम सभी जानते हैं,कि आदिवासी प्रकृति प्रेमी है। इसका लोकजीवन के दर्शन में सामुहिकता सर्वोपरि है। एक ओर जहां प्रकृति आजीविका का मुख्य साधन है, वहीं दूसरी ओर परंपरा व संस्कृति सब कुछ प्रकृति पर आधारित व नियंत्रित होता है। आदिवासियों में सामुहिकता भी जमीन से जुड़े हुए है। खेती करते समय हो, चाहे रोपनी हो, फिर कटाई-बुनाई या पुआल समेटना हो, सामाजिक कार्य हो, सरहुल का नृत्य या जुलुस निकालना, बाहा के अवसर पर जाहेर का पूजा करना हो, या शिकार करना हो, आदिवासी समाज के सभी नर-नारियों व बच्चे, बुजुर्ग  का समान सहभागिता बना रहता है। सारे कार्य मिलकर समूह में किए जाते हैं। यही कारण रही है, आदिवासी समुदाय के लोगों आज भी  अपनी भाषा संस्कृति को सुरक्षित रखने में कामयाब हुए हैं। परन्तु आने वाले भविष्य में यह आपने को किसान सुरक्षित रख पायेंगे? यह सवाल या संवाद में आप लोगों के विवेकाधीन विचारार्थ  प्रस्तुत हेतु प्रतीक्षारत में रहुंगा।



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