संविधान में आदिवासी के लिए सामाजिक सुरक्षा संबंधी विशेष प्रावधान

 


भारतीय संविधान में अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के विकास के लिए विशेष सुरक्षा की व्यवस्था किया गया है। उनमें प्रमुख  सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा एवं सांस्कृतिक, राजनैतिक, सरकारी सेवा, है आज हम इस आलेख में सामाजिक  सुरक्षा के संबंध में विस्तृत अध्ययन करेंगे:- 

सामाजिक सुरक्षा:-  कानून के समक्ष समानता के साथ साथ संविधान द्वारा सामाजिक समानता की भी व्यवस्था की गई है। मौलिक अधिकार के अनुच्छेद 15 एवं 16 (7) के अनुसार राज्य द्वारा धर्म, मुलवंश, जाति,लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर नागरिक के प्रति जीवन के किसी भी क्षेत्र में पक्षपात नहीं करेगा। 

किन्तु अनुच्छेद 15 (4) में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के उन्नति के लिए सामाजिक एवं शैक्षणिक का विशेष व्यवस्था करता है, तो राज्य का कानून को आसमान का समर्थक नहीं करेगा। उसी तरह अनुच्छेद 16(4) भी राज्य को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के नियुक्ति का आरक्षण की व्यवस्था से रोका नहीं जा सकता।अगर राज्यों के नजर में जाति या जनजाति को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है।

संविधान के अनुच्छेद-17- के द्वारा अस्पृश्यता का अन्त कर दिया गया है। इसका किसी भी रुप में आचरण निषिद्ध कर दिया गया है। अस्पृश्यता से उत्पन्न होने वाली दो महत्वपूर्ण विधेयक का निर्माण कर नागरिकों को विशेष कर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जाति को सुरक्षा प्रदान किया है, वह है- नागरिकों की सुरक्षा अधिनियम 1955 एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति को सुरक्षा के लिए शोषण के विरुद्ध अधिनियम 1988।

संविधान के अनुच्छेद 23- में मनुष्य के क्रय-विक्रय और बेगारी पर रोक लगा दी गई है। जिसका उल्लंघन विधि के अनुसार दण्डनीय अपराध है।इस अनुच्छेद में विशेष रूप से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का उल्लेख तो नहीं है, किन्तु अधिकांश मजदूर इन जातियों से ही आने के कारण अनुच्छेद का महत्व है।

अनुच्छेद 24- से बाल श्रमिकों को कारखाना एवं खानों आदि में नौकरी रखने का निषेध है। इसमें 14 साल से कम आयु वाले बच्चों को जोख़िम भरा काम नियुक्ति नहीं करेगा। यह अनुच्छेद भी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के संबंध में विशेष कुछ नहीं कहा गया है। किन्तु अधिकांश बालक इन समुदाय में से ही बाल श्रमिकों के रूप में काम करते है। इसलिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए अनुच्छेद महत्वपूर्ण है।

अनुच्छेद 25- सभी व्यक्तियों को अपनी इच्छानुसार धार्मिक आचरण और प्रचार-प्रसार करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गई है। किन्तु अभी भी "सरना" धर्मावलंबी को मान्यता नहीं दिया गया है। जो कि बहुत खेदजनक है। दुःख की बात तो यह है कि बहुसंख्यक हिन्दू धर्मावलंबी संताल, मुण्डा, हो, उरांव को हिन्दू धर्म का अंश के रुप में ही मानते हैं, यह न्यायसंगत गलत है। किन्तु आदिवासी समुदाय का धर्म "सरना" है, जो कि वे किसी मूर्ति की पूजा नहीं करते, वल्कि प्रक‌ति पूजक है।

Post a Comment

0 Comments