जयपाल सिंह मुंडा की वजह से संविधान में आए आदिवासियों के लिए अधिकार।

 

क्या बजह रही है, कि आजादी के 73 बर्ष बाद भी आदिवासी अपने मुल अधिकार के लिए संघर्षरत है और उनके अधिकारों से  वंचित रखा जा रहा है । कहीं न कहीं संविधान में  चूक हुई होगी, जिसके बजह से आज यह स्थिति उत्पन्न हो गई है । वे आज अपने अधिकारों के लिए लड़  रही है।  एपीआई  यानी आम्बेडकरवादी पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री विजय मानकर का कहना है कि संविधान में जो भी अधिकार आदिवासियों को प्राप्त हुए हैं वे जयपाल सिंह मुंडा बजह से है। परन्तु भारत के संविधान में एक बड़ी ऐतिहासिक चीज छुटी हुए हैं। जो जयपाल सिंह मुंडा संविधान सभा में बार-बार कहते रहे,कि भारत के आदिवासियों को Aborginal Tribe  लिखना चाहिए था। अर्थात् वे इस देश के मुल निवासी है। लेकिन भारत के संविधान में आदिवासियों के लिए अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe)  लिखा गया। Aborginal Tribe नहीं। यह बहुत बड़ी  Historical Constitutional भूल है। जिसके बजह आज देश के अन्दर एक  नया सवाल खड़ी हो गई है । अगर आदिवासी  भारत के मुल  निवासी नहीं है। तो इस देश के संविधान के अनुसार मुल निवासी कौन है? इस पर खोज  होना  चाहिए । इस संवैधानिक भुल को सुधारने के उद्देश्य से 9 अगस्त 2018 को विजय मानकर द्वारा संसद को एक विल प्रस्तुत किया गया है। जिसमें निम्नांकित चार- पांच  विंदुओ पर भारत के संसद का ध्यानाकर्षित किया है। पहला  अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) का मतलब मुल निवासी (Aborginal Tribe) होना चाहिए। ऐसा संविधान में आदिवासियों के लिए संशोधन होना चाहिए। दुसरी बात ग्रामसभा (Village Council) एंव आदिवासी परामर्शदात्री समिति (TAC) जो पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में लागू है, जिसमें राज्यपाल को उस क्षेत्र विकास कार्यों पर समीक्षा,नियम लागू करना, न लागू करना और महत्वपूर्ण अधिकार सुरक्षित है। पर अगर इन अधिकारों व नियमों का पालन सही से नहीं करता हो तो उसके खिलाफ कोई कार्रवाई या Motion चलाने का अधिकार TAC में नहीं है। संसद में पारित किया जाना चाहिए कि अगर राज्यपाल अपने नियमों का ठीक-ठाक से पालन न कर तो आदिवासी परामर्शदात्री समिति को यह अधिकार हो कि वे राज्यपाल के खिलाफ अभियोग चला सके। तीसरा और महत्वपूर्ण बातें हैं की आदिवासी परामर्शदात्री समिति के अध्यक्ष सिर्फ और सिर्फ आदिवासी ही होनी चाहिए। गैर- आदिवासी आदिवासी के प्रति सचेत व सजग नहीं होंगे इससे विकास कार्य  सही रुप से संचालित संभव नहीं है। इसलिए कोई विधायक या मंत्री ही आदिवासी परामर्शदात्री समिति के अध्यक्ष होना आवश्यक है। चौथी  यह  सुझाव है कि झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ के आलावे वाकी राज्यों में जहां आदिवासी समुदाय रहते हैं जैसे पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना, मध्य प्रदेश व गोवा में  संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत Tribal Ministry का गठन आदिवासी अधिकार और उनके विकास के लिए किया जाना चाहिए। पांचवीं बात यह है पेसा कानून के तहत यदि कोई भी संशोधन करनी हो National Scheduled Tribal Commission,Human  Rights commission, Parliamentary committee on Human rights से अनुमति लेनी होगी। यह पांच विंदु महत्वपूर्ण है, इससे आदिवासी भाईयों को समझना जरूरी है। जल, जंगल,जमीन देश के आदिवासी समुदाय का है। सर्वेक्षण पता चला है कि पुरे देश में आदिवासी के जमीन के अंदर एक हजार लाख करोड़ सम्पत्ति छिपी हुई है। इसका 15-20 प्रतिशत का मालिक आदिवासियों को क्यों नहीं होना चाहिए। International Labour Organisation अधिवेशन 1969 तथा UNO Universal Declaration 2007 के तहत मुल निवासी ( Indigenous people) को पांच अधिकार दिए हैं-  जमीन, सीमांकन , संसाधन, संस्कृति और सह अस्तित्व अर्थात् पहचान। जमीन के अंदर व उपर जो भी खनिज है, उसमें मालिकाना हक  आदिवासीयों का होगा।अगर दो देशों में आदिवासी रहते हो ,तो उनके बीच आदान प्रदान में सीमा बाधक नहीं होना चाहिए। भारत आजाद होने से पहले कानाडा और न्यूजीलैंड के संसद ने संशोधन कर वह के आदिवासियों को  मुल निवासी( Indigenous people ) घोषित किया है। भारत में भी उसी तर्ज पर यहां आदिवासियों को मुल निवासी (Indigenous people) होने  संबंधी प्रस्ताव या अध्यादेश संसद में पेश कर पारित करने की जरूरत है। 

कालीदास मुर्मू, सम्पादक, आदिवासी परिचर्चा।

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