झारखंड आंदोलन: जब जयपाल सिंह मुंडा ने झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय किया,तब एन.ई.होरो झारखंड आंदोलन को जीवित रखा


सन् 1963 में जब जयपाल सिंह ने झारखंड पार्टी का काँग्रेस में विलय कर दिया तब झारखंड पार्टी को फिर से जीवित करने वालों में एन.ई. होरो का नाम अग्रणी थे. उन्होंने झारखंड आंदोलन को 1960 और 1970 के दशक में आगे बढ़ाया था. होरो साहब झारखंड पार्टी के अध्यक्ष थे. वे तोरपा विधानसभा से करीब पाँच बार विधायक चुने गए और बिहार में 1967-72 के बीच बिहार के मिलीजुली सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे. खूँटी से दो बार लोकसभा के सांसद रहे और 1973 में उप- राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार भी थे. एन.ई. होरो के नेतृत्व में अलग झारखंड राज्य दो बार क्रमशः 12 मार्च 1973 और 16 अप्रैल 1975 को दिल्ली में झारखंड पार्टी की ओर से हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को स्मारपत्र दिया गया. झारखंड आंदोलन के कई साल गुजर गए और 14 नवंबर 2000 की आधी रात को झारखंड आधी रात के पूर्व झारखंड आंदोलन के वयोवृद्ध नेता एन.ई. होरो से झारखंड के उस ऐतिहासिक राज्य के गठन के अवसर पर राज्यपाल, मंत्री शपथ लेने वाले थे, पत्रकारों द्वारा 14 नवंबर की क्षण के अनुभव को जानने की इच्छा जताई. होरो साहब ने पत्रकारों के बीच अपने अनुभव को इस प्रकार से बाँटा जिसे "प्रभात खबर" (15 नवंबर 2000) ने प्रकाशित किया था-

राँची, 14 नवंबर : आज ढोल-ढाक, माँदर, नगाड़ा नहीं बज रहे. चारों तरफ मातमी माहौल है. झारखंड आंदोलन की नींव मजबूत करने पक्काऔर जनाकांक्षाओं को स्वर देने वाले झारखंड के "बूढ़े शेर" श्रद्धेय एन.ई. होरो के ऐतिहासिक जीइएल चर्च परिसर स्थित आवास में उदासी है. कुछ लोगों से वे घिरे बैठे हैं. आज उन्होंने अपने को मरांग गोमके कहलाने से भी मना कर दिया. वे आहत और भारी मन से कहते हैं कि किसने बाबूलाल मरांडी के नाम के आगे मरांग गोमके लिखा. क्या वे समझते हैं इसका क्या मतलब है? मरांग गोमके तो एकमात्र और एकमात्र जयपाल सिंह थे, जिनकी विरासत को हमने बढ़ाया. मेरे नाम के आगे भी मरांग गोमके लिख दिया जाता है, यह गलत है. श्री होरो अपने उस ऐतिहासिक कमरे में बैठे हैं जहाँ झारखंड आंदोलन की रणनीतियाँ बनती रहीं. जयपाल सिंह मुंडा यहीं आते थे.  राज्य पुनर्गठन आयोग को 1954 में जो ज्ञापन दिया गया, वह इसी कमरे में तैयार हुआ. कच्ची जमीन और खपरैल की छतवाले इस मकान में आज मरकरी जल रही थी. अलबत्ता वहाँ तो हमेशा बल्ब की ऐसी रोशनी कि कुछ दिखाई न पड़े, इतना धीमा वोल्टेज बिजली विभाग की कृपा ऐसी ही बनी रही है. कोयलकारो जनसंगठन के युवा नेता विजय गुड़िया, राँची विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. ए. के धान, डॉ. मंजू ज्योत्स्ना व आंदोलन के बुजुर्ग पुराने साथी समेत सभी आज के उदास और गमगीन माहौल की चर्चा करते हैं. श्री एन.ई. होरो कहते हैं कि अभी एक बजने वाला है. मुझे शपथ ग्रहण समारोह के कार्यक्रम में आने के बाबत आमंत्रण नहीं मिला है. प्रो. शशिभूषण महतो कहते हैं कि अलग राज्य का तो हमने स्वागत किया, लेकिन आंदोलन के इतिहास पुरुष को तो न्योता भी नहीं दिया गया है. यह अपमानजनक और आंदोलनकारियों की उपेक्षा का नमूना है. समझ सकते हैं कि आनेवाले दिन कितने भयावह होंगे. खून बहानेवालों और इस माटी की खातिर सब कुछ लुटाने वालों के साथ सरकार कैसा व्यवहार कर रही है. श्री होरो कहते हैं कि नया लूट राज आने की तैयारी है. झारखंड नहीं वनांचल राज्य बना है. चारों तरफ शोक का माहौल है. भाजपा की वजह से ऐसा हुआ है. भाजपा के नेतागण पूरे इलाके में ऐसी धमा-चौकड़ी कर रहे हैं, जैसे झारखंड की इस धरती पर कोई दूसरा है ही नहीं. वे कहते हैं ऐसा माहौल बनेगा, इसका अंदाजा पहले से था. धनबल, बाहुबल से वे लबरेज हैं. हमारी गरीब, पिछड़ी जनता के लिए आज जगह नहीं है. अर्द्धसैनिक बलों के बीच अलग राज्य कायम किया जा रहा है. चुनाव के वक्त से ऐसा लग रहा था. आंदोलन की सबसे पुरानी पार्टी के लिए कहाँ जगह नहीं है. लोग नक्सलवाद की ओर इसलिए ही उन्मुख हो रहे हैं. वे तो ऐसे हालात में यहां तक आएँगे ही. ऐसे शोषकों को मारेंगे. दहशत का वातावरण है तो इसलिए कि जनता को नई राज व्यवस्था से काट कर सिंहासन पर आसीन होने की तैयारी है. आज जो लोग नक्सलपंथ की तरफ जा रहे हैं, वे हमारे लोग ही हैं. हमारे झारखंडी लोग ही एरिया कमांडर बन रहे हैं. श्री हो गए हैं. कड़िया मुंडा ईमानदार हैं. उन्हें भाजपा ने बरदाश्त नहीं किया. लोगों को न्याय नहीं बाबूलाल मरांडी के स्वागत में कौन लोग हैं.  सेठ, मारवाडी और माफिया, दलाल उनके आगे-पीछे मिलेगा, गरीबी नहीं हटेगी, तो लोग नक्सली बनेंगे. हम इसे रोक नहीं सकते. नक्सलियों ने लोगों को मारने की धमकी दी है, तो इसके कारण हैं.  आज झारखंडी, झारखंड के आंदोलनकारी कहां हैं? श्री होरो कहते हैं कि सरकार में हमारे लोग नहीं हैं. ऐसे में बुनियादी मसले कैसे हल होंगे. हम हर परिस्थिति को झेलने को तैयार हैं. सब कुछ ऐसे चलने नहीं दिया जाएगा. झारखंडी जनता एक नई लड़ाई की तैयारी के लिए फिर उठ खड़ी होगी. प्रतिरोध की ऐतिहासिक परंपरा इस इलाके में रही है.लोग बिरसा की तरह तीर-धनुष लेकर उठ खड़े होंगे. 

संकलन : कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा।

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