पेसा कानून और झारखंड: ग्राम सभा की सर्वोच्चता से परंपरागत स्वशासन का पुनर्जागरण



झारखंड सरकार द्वारा पेसा (पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्र) अधिनियम को मंजूरी देना राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समाज के लिए एक ऐतिहासिक कदम है. यह अधिनियम संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अंतर्गत आदिवासी बहुल क्षेत्रों में ग्राम स्वशासन को सशक्त बनाने का उद्देश्य रखता है. इसके लागू होने से झारखंड में ग्राम सभा, परंपरागत संस्थाओं और स्थानीय समुदायों की भूमिका निर्णायक रूप से मजबूत होगी.

सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव ग्राम सभा की सर्वोच्चता के रूप में सामने आएगा. पेसा कानून के तहत ग्राम सभा को विकास योजनाओं, प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग, सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रमों और स्थानीय विवादों के समाधान में निर्णायक अधिकार प्राप्त होते हैं. झारखंड जैसे राज्य में, जहाँ जल, जंगल और जमीन (जेजेज़े) आदिवासी जीवन की आधारशिला हैं, ग्राम सभा की सहमति के बिना खनन, भूमि अधिग्रहण या वन संसाधनों के उपयोग पर रोक से समुदायों के हितों की रक्षा होगी.

दूसरा बड़ा प्रभाव परंपरागत स्वशासन प्रणालियों की संवैधानिक मान्यता है. झारखंड में मांझी-परगना, मुंडा-मानकी, पड़हा जैसे पारंपरिक शासन ढाँचे सदियों से सामाजिक अनुशासन और न्याय का आधार रहे हैं. पेसा कानून इन व्यवस्थाओं को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है, जिससे आधुनिक पंचायती व्यवस्था और पारंपरिक संस्थाओं के बीच समन्वय स्थापित होगा.इससे स्थानीय विवादों का समाधान स्थानीय स्तर पर, कम खर्च और अधिक स्वीकार्यता के साथ संभव हो सकेगा.

तीसरा, प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय नियंत्रण पेसा का केन्द्रीय तत्व है. लघु वनोपज, जल स्रोत, चरागाह और सामुदायिक भूमि पर ग्राम सभा का अधिकार बढ़ने से आदिवासी आजीविका सुदृढ़ होगी. इससे न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, बल्कि बाहरी शोषण और विस्थापन की घटनाओं में भी कमी आएगी.

चौथा प्रभाव लोकतांत्रिक सहभागिता और जवाबदेही में वृद्धि के रूप में दिखेगा. जब निर्णय गांव में, ग्राम सभा के माध्यम से होंगे, तो योजनाओं की पारदर्शिता बढ़ेगी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा. महिलाओं, युवाओं और कमजोर वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित होने से सामाजिक न्याय को भी बल मिलेगा.

हालाँकि, चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं. पेसा के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए नियमों की स्पष्टता, प्रशासनिक इच्छाशक्ति और जन-जागरूकता आवश्यक है. यदि नौकरशाही या राजनीतिक हस्तक्षेप ग्राम सभा की स्वायत्तता को सीमित करता है, तो कानून का उद्देश्य कमजोर पड़ सकता है.0इसलिए प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और निरंतर निगरानी अनिवार्य होगी. 

संकलन: कालीदास मुर्मू संपादक आदिवासी परिचर्चा।

Post a Comment

0 Comments