राजा से होता है सीधा संवाद, इसलिए भूटान में नहीं होती भारत जैसे हिंसा और जन आंदोलन


नई दिल्ली : जब  नेपाल,  बांग्लादेश, म्यांमार,  पाकिस्तान,  श्रीलंका राजनीतिक अस्थिरता और जन आंदोलनों से जूझते  रहे, उसी दौरान भूटान अपवाद बना रहा.  हिमालय की गोद में बसा यह छोटा सा देश हैप्पीनेस इंडेक्स में ऊपर दिखाई देता है, और यहां सड़कों पर शायद ही कभी बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन होते हैं.  अब सवाल  उठता है कि आखिर भूटान कैसे बचा रहा इस उठापटक से ?

भूटान में 2008 तक पूरा शासन राजा के हाथों में था. चौथे राजा जिग्मे सिंगये वांगचुक ने दूरदृष्टि दिखाते हुए लोकतंत्र की नींव रखी थी. उनके ऊपर कोई दबाव नहीं था, न कोई आंदोलन, लेकिन उन्होंने नेपाल जैसे हालातों से सबक लेते हुए खुद सत्ता साझा करने का फैसला किया. संविधान बना, चुनाव हुए और लोकतंत्र शांतिपूर्वक स्थापित हो गया. सत्ता का यह स्वैच्छिक हस्तांतरण जनता के विश्वास को मजबूत करने वाला साबित हुआ.
 भूटान में राजा आज भी बेहद लोकप्रिय हैं. वे हेड ऑफ स्टेट बने रहते हैं, लेकिन रोजमर्रा का शासन निर्वाचित सरकार ही चलाती है. संकट के समय जनता और सरकार दोनों ही राजा की ओर देखते हैं. इस कारण वहां सत्ता परिवर्तन के लिए हिंसक आंदोलन नहीं होते हैं. भूटान की आबादी कम है और यहां बौद्ध धर्म माना जाता है. साझा सांस्कृतिक पहचान और परंपराएं लोगों को जोड़कर रखती हैं. इसके विपरीत नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों में विविधता और जातीय तनाव राजनीतिक अस्थिरता की जड़ बने.
 जानकारी के मुताबिक भूटान में प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित है. सरकार और राजशाही की आलोचना आसान नहीं। स्थानीय मीडिया छोटा है और वित्तीय रूप से सत्ता पर निर्भर है. सोशल मीडिया पर भी निगरानी रहती है. अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अक्सर आरोप लगाती रही हैं कि असहमति की आवाज दबा दी जाती है. उदाहरण के तौर पर, नेपाली मूल के हजारों लोगों का विस्थापन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठा, लेकिन भीतर भूटान में यह मुद्दा दबा दिया गया.
 भूटान के राजाओं ने जनता के बीच जाकर सीधा संवाद किया. गांवों में जाकर लोगों की समस्याएं सुनना और संकट के समय मदद करना, उनकी लोकप्रियता का मुख्य कारण बना. इस वजह से लोग असंतोष व्यक्त करने के लिए सड़कों पर उतरने के बजाय राजा पर भरोसा करते हैं. भूटान में स्थिरता की वजह राजशाही की दूरदृष्टि, लोकतंत्र का शांतिपूर्ण अंगीकरण, सामाजिक-सांस्कृतिक एकरूपता और मजबूत सेंसरशिप है. हालांकि आलोचक कहते हैं कि यह शांति आंशिक है और सेंसरशिप की कीमत पर हासिल हुई है. इसके बावजूद भूटान अब तक उस प्रोटेस्ट कल्चर से बचा है, जिसने भारत के पड़ोसी देशों को हिला दिया है और सत्ता परिवर्तन भी हुआ है. 

संकलन: कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा।

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