नीति आयोग ने ‘टिकाऊ ग्रामीण आजीविका’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया

 



नीति आयोग ने ‘टिकाऊ ग्रामीण आजीविका
 विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने की. संगोष्ठी में ग्रामीण आजीविका को बेहतर करनेबाजार के साथ संपर्कग्रामीण मूल्य श्रृंखला एवं निवेशसूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंस)उद्यमिताग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार सृजनसुदृढ़ कृषि और जल सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान केन्द्रित किया गया.

इस संगोष्ठी ने विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े विचारकोंनीति निर्माताओंशिक्षाविदों और सामुदायिक नवप्रवर्तकों को एक साथ लाया. प्रासंगिक मंत्रालयोंअंतरराष्ट्रीय संगठनोंगैर सरकारी संगठनोंनागरिक समाजउद्यमियों और स्टार्ट-अप के प्रतिनिधियों ने ग्रामीण क्षेत्रों में टिकाऊ और समावेशी आजीविका को बढ़ावा देने से संबंधित विचारों के बहुआयामी आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान की.

अपने मुख्य भाषण मेंडॉ. रमेश चंद ने टिकाऊ ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने में कृषि के अहम महत्व को रेखांकित किया. संबोधन के बाद ग्रामीण विकास मंत्रालयकलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज और विकासशील देशों की अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली (आरआईएस) का प्रतिनिधित्व करने वाले विशेषज्ञों ने विवेकपूर्ण विचार प्रस्तुत किए. चर्चाओं में विकास के लिए अपेक्षाकृत अधिक समन्वित और संतुलित दृष्टिकोण की हिमायत करते हुए शहरी-ग्रामीण विभाजन को पाटने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। विभिन्न सत्रों में इस तथ्य को भी रेखांकित किया गया कि भविष्य में भारत का विकास स्मार्ट गांवों की अवधारणा पर निर्भर करेगाजिसमें समावेशी एवं आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण हेतु नवीन रणनीतियों की आवश्यकता पर बल दिया गया हो.

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में, आने वाले वर्षों के दौरान भारत की जीडीपी में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के संभावित योगदान को रेखांकित किया गया. प्रतिभागियों ने भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उभरते रुझानों पर ध्यान देने के साथटिकाऊ आजीविका हासिल करने के लिए ग्रामीण बुनियादी ढांचे के विकास और समन्वित रणनीतियों पर चर्चा की. इस सत्र में वित्तीय समावेशनगिगदेखभालहरित एवं नीली अर्थव्यवस्थाओं में रोजगार सृजन और निर्माणसेवाओं एवं विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में रोजगार के विस्तार के माध्यम से समावेशी आर्थिक विकास की संभावनाओं का पता लगाया गया. चर्चाओं में उत्पादकों को बड़े बाजारों से जोड़कर ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने पर प्रकाश डाला गया और विकेंद्रीकरण एवं समुदाय-संचालित पहल के माध्यम से ग्रामीण प्रगति को आगे बढ़ाने में ग्राम पंचायतोंमहिलाओं के नेतृत्व वाले संस्थानों और नागरिक समाज के महत्व पर जोर दिया गया.

दूसरा सत्र जलवायु परिवर्तन एवं संबंधित कमजोरियों के बीच टिकाऊ आजीविका पर केन्द्रित था. एनएएआरएम, आईसीएआर, सीडब्ल्यूसी और आईडब्ल्यूएमआई जैसे संस्थानों के विशेषज्ञों ने कृषिजल सुरक्षा और ग्रामीण विकास से संबंधित नवीन शोध साझा किए. प्रतिभागियों ने यह राय व्यक्त की और कहा कि ग्रामीण भारत में सुदृढ़ता को बढ़ाने तथा आजीविका को बेहतर बनाने हेतु एक व्यापक भूजल कानून के साथ-साथ कृषि एवं ग्रामीण उद्यमिता के क्षेत्र में रचनात्मक मॉडलों की तत्काल आवश्यकता है. 

(सौजन्य: पत्र एवं सूचना कार्यालय, नई दिल्ली)

संकलन: कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा। 

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