झारखंड आंदोलन के अजेय योद्धा वीर शहीद निर्मल महतो


 झारखंड आंदोलन में सक्रियता के साथ भूमिका निभाई वाले योद्धाओं में से एक नाम वीर अमर शहीद निर्मल महतो थे. जिनके शहादत से झारखंड आंदोलन को एक नई दिशा व उग्र रूप मिली थी.  उन्होंने झारखंडी अस्मिता एवं मूल्यों की रक्षा के लिए आपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले निर्मल महतो एक विचारधारा थे. हमें यह बातें याद रखना चाहिए निर्मल महतो कुर्बानी से झारखंड आंदोलन उग्र रूप ले लिया था.  इसका असर दिल्ली तक पहुंच गई थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के निर्देश पर गृहमंत्री बुटा सिंह झारखंड मामले में वार्ता के लिए एक शिष्टमंडल को दिल्ली तलब किया था. 

 तत्कालीन बिहार राज्य ( वर्तमान में झारखंड) के वृहद सिंहभूम जिला के लौह नगरी जमशेदपुर के कदमा स्थित उलियान में 25 दिसंबर 1950 में सम्पन्न कुड़मी परिवार में हुआ. निर्मल महतो जगबंधु महतो एवं श्रीमती प्रिया बाला महतो के चौथे पुत्र थे.  वे विद्यार्थी जीवन से सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में लोगों के समास्याओं सुनते थे. जहां शोषण की बातें सुनते वहां पहुंच जाते थे. इस प्रकार धीरे धीरे निर्मल महतो आमजनों के बीच  में अलग पहचान बनाया.वे तेज एवं धारदार वक्ता भी थे. उन्होंने झारखंड आंदोलन को गतिमान बनाने के लिए आर्थिक नाकेबंदी, रैली, सभाएं वगैरह कर राष्ट्रीय स्तर पर झारखंड को स्थापित करने का काम किया. झारखंड आंदोलनकारी उनके एक घटनाओं को ज़िक्र करते हुए बताते हैं, कि उड़ीसा के क्योंझर जिला में कुछ असामाजिक तत्वों के द्वारा चार गांव की लगभग 500 एकड़ जमीन कब्जा कर लिया था. इससे लेकर गांव वाले परेशान थे. ग्रामीणों ने निर्मल महतो से संपर्क साधा एवं उसे अपनी समस्या से अवगत कराया. निर्मल महतो ने वहां जाकर जनसभा आयोजित कर एसडीओ को सचेत करते हुए कहा कि वह ग्रामीणों को दखल दिलाएं वरना अगली बार वे जनसभा करेंगे और सिर के बल पर लोगों को उनकी जमीन वापस दिलाएंगे. इस तरह से निर्मल दास आमजनों की  सहायता करने के लिए तत्पर रहते थे.  

निर्मल महतो को छात्र जीवन से सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यों में रुचि रखते थे. 1970 ई. में जयपाल सिंह मुंडा के आकस्मिक निधन के बाद झारखंड आंदोलन में शिथिलता आ गई थी. तत्कालीन झारखंड आंदोलनकारी युवा नेता बागुन सामुराई,एन.ई.होरो एवं उनके साथीगण दिशाविहीन हो गए थे. इसी समय धनबाद, बोकारो एवं रामगढ़ के क्षेत्र में एक आदिवासी संताल युवा ने शीशा जमींदारों, महाजनों एवं सूदखोरों के शोषण के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. मार्क्सवादी नेता कामरेड ए.के. राय एवं अधिवक्ता विनोद बिहारी महतो का इन पर नजर पड़ी. तीनों नेता सामाजिक नेता झारखंड आंदोलन को पुनर्जीवित करने एवं अलग राज्य की मांग पर  एक मंच आए और 4 फरवरी 1973 ई. को  झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया. आगे चलकर निर्मल महतो अध्यक्ष एवं शिबु सोरेन इसके महासचिव बने. झारखंड आंदोलनकारी एवं आजसू के तत्कालीन केन्द्रीय। अध्यक्ष सूर्य सिंह बेसरा बताते हैं, कि 21अक्टूबर 1982को नीमडीह प्रखंड के तिरुलडीह गांव में। पुलिस फायरिंग में अजित महतो धनंजय महतो नमक दो कॉलेज छात्रों के मारे जाने के बाद पुलिस का आंतक इतना बढ़ गया था. कि दोनों का शव लेकर कोई उनके गांव नहीं जाना चाहता था. उस समय निर्मल महतो और उनके  साथी अखिलेश महतो आदित्यपुर में थे. जब उन्होंने जानकारी मिली कि तिरुलडीह पुलिस फायरिंग में मारे गए दोनों छात्रों के शव एमजीएम अस्पताल में पड़े हैं. निर्मल महतो ने पैसा की व्यवस्था कर दोनों शवों को लेकर  तिरुलडीह गांव गए. धनंजय महतो को खुद निर्मल महतो ने मुखाग्नि दी. इस घटना के बाद निर्मल महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेताओं में गिनें जाने लगे. इस प्रकार से निर्मल महतो का राजनैतिक सफर एवं कद तेजी के साथ बढ़ने लगी थी. 

बात आठ अगस्त 1987 की थी. जमशेदपुर में ठेकेदार अवतार सिंह की मां का श्रद्धा कर्म था. उसे कार्यक्रम में भाग लेने के लिए  सात अगस्त को ही निर्मल महतो, ज्ञान रंजन, सूरज मंडल और बाबूलाल सोय रांची से जमशेदपुर आए थे. उन लोगों के ठहरने की व्यवस्था चमरिया गेस्ट हाउस में की गती थी. आठ अगस्त का दिन था, निर्मल महतो, ज्ञान रंजन, सूरज मंडल अपने कुछ सहयोगीयों के साथ गेस्ट हाउस की सीढ़ी से उतर रहे थे. सीढ़ी से उतरते समय धीरेन्द्र सिंह ने सामने से और वीरेंद्र सिंह ने पीछे से गोली मारी. गोली लगते ही निर्मल महतो वहीं गिर पड़े. सूरज मंडल को भी अंगुली में गोली लगी. दोनों को जीप से एमजीएम अस्पताल ले जाया गया. जहां चिकित्सकों ने निर्मल महतो को मृत्यु घोषित कर दिया. निर्मल महतो की हत्या की खबर पूरे राज्य में आग की तरफ फैल गयी. हत्या के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा और आजसू कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए. जमशेदपुर शहर बंद रहा. तिन दिनों के झारखंड बंद का आह्वान किया गया.  शिबू सोरेन भी जमशेदपुर पहुंच गए. जमशेदपुर में बड़ी सभा हुई. निर्मल महतो की शव यात्रा में लाखों में लोग शामिल हुए.उन्हे कदमा स्थित उलियान में  समाधि किया गया. इस तरह से एक एक उदयमान नेता का जीवनकाल हमेशा के लिए दफ़न हो गया. निर्मल महतो आज भी झारखाड़ियों के अरमानों में प्रकाशमान है.

 कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा। 

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