संताल परगना के गौरव डाॅक्टर धुनी सोरेन युवाओं के लिए बनें प्रेरणा स्रोत

 


संताल परगना एवं संताल समाज के इतिहास में यह पहला अवसर है. जब कोई आदिवासी संताल समाज का युवा विक्टोरिया क्वींन से मिलने की उम्मीद लिए संताल परगना के छोटे से गांव वोआरीजोर के पगडंडियों से निकल कर लंदन तक पहुंच जाय. वाकई यह एक ऐतिहासिक घटना है. हम यहां बात कर रहे हैं, संताल परगना के गौरव डाॅक्टर धुनी सोरेन की. जिन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और विद्वत्ता के बदौलत ब्रिटिश भारत के तत्कालीन संताल परगना जिले के सुदूरवर्ती क्षेत्रों से निकल कर डाॅक्टर बनाने की सपना साकार करने के लिए इंग्लैंड तक की सफर किया और वहां जाकर वही रह गए. जबकि उस ज़माने में यानी आजादी के पुर्व में शिक्षा के लिए शहरों में ही पाठशाला हुआ करता था.वह भी सीमित क्षेत्रों तक. जब देश भी आजाद नहीं हुआ था वैसे परिस्थितियों में एक आदिवासी बच्चों के मन में डॉक्टर बनने की लालसा कितनी चुनौती भरी होगी. 88 वर्षीय डाॅ सोरेन स्मरण करते हुए कहते है, जब हमें आजादी मिली वे महज 10-12 वर्ष थे. आजादी के जश्न में विद्यालय द्वारा प्रभाव फेरी निकाली गई थी, वे उसमें तिरंगा लिए शामिल थे. वास्तव में देखा जाए तो झारखंड की माटी से संघर्षशील सपूत का उदय की साक्षी हैं. 

डॉ सोरेन इंग्लैंड में रहते हुए भी अपने मातृभूमि एवं मातृभाषा में अलग नहीं हुए.वे प्रत्येक वर्ष सिध्दो-कान्हू की पावन धरती संताल परगना ( झारखंड ) अपने प्रियजनों से मिलने पहुंचते है. वे यहां के विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं.और सामाजिक कार्यों में अपनी सहभागिता निभाते हैं. डॉ सोरेन विदेश में रहे  संतालों के संगठन के मुख्य सलाहकार भी हैं.  इन दिनों वे झारखंड के दौरे पर हैं तथा झारखंड की उप-राजधानी दुमका रह रहे हैं. यहां से वे विभिन्न सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम में शिरकत होकर  सुदूरवर्ती क्षेत्रों के आदिवासी  रूबरू होते हैं एवं उनकी समस्याओं समझने और अपने स्तर से  निष्पक्षता करने का प्रयास करते हुए उन्होंने इन दिनों देखा जा सकता है. इस सिलसिले में विगत दिनों महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मूर्मू से भी मिल चुके हैं. निश्चित रूप से प्रतिभा के धनी डॉ धुनी सोरेन संताल परगना के युवाओं के लिए प्ररेणा स्रोत है. 

कालीदास मुर्मू, संपादक आदिवासी परिचर्चा।

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