खोजबीन: अब भी कोविड-19 संक्रमण से अछुत है सबर आदिम जनजाति


एक ओर जहां दुनिया में कोविड-19 की  दुसरी लहर से लाखों लोगों संक्रमित हो रहे हैं और इलाज व आक्सीजन की कमी से  लाखों के संख्या में लोगों ने अपना  जान गंवा चुके हैं। इस लहर की तीव्रता इतना अधिक है कि इसके चपेट में आने से अक्सीजन की मात्रा में कमी से विकट परिस्थितियों उत्पन्न हो रही है। सुरक्षा सप्ताह के नाम पर हमारे राज्य झारखंड समेत देश के विभिन्न हिस्सों में लाकडाउन कर संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए बाध्यता है, वहीं दूसरी ओर संक्रमण से बचने के लिए टीकाकरण अभियान भी युद्ध संयंत्र पर देश में चल रही है। वरहाल इन सब के बीच राज्य में ऐसा भी जगह है, जहां कोविड-19 के नाम तक भी उन्हें पता नहीं है। आप सुनकर जरुर आश्चर्यचकित होगें, पर यह हकीकत है। जी हां राज्य के पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका अन्तर्गत सबरनगर जो गुबंदनुमा पहाड़ियों के विशाल समतल भूमि पर अवस्थित है। यहां सबर आदिम जनजाति के लगभग 73 परिवार रहते हैं। जनसंख्या लगभग  तीन सौ के आसपास है। सभी के पास रहने के लिए इंदिरा आवास व विरसा आवास है। पूछने से पता चला कि डाकिया योजना के तहत इन्हें चावल मिलती है, पर इसके मात्रा के बारे पुछने पर सटीक जवाब देने से बचते रहे।  विश्वव्यापी फैलें कोरोनावायरस के संबंध में इन्हें कोई जानकारी नहीं है। इस समुदाय  के लोगों को शिक्षित करने एवं इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने  के लिए 1977 ई० में आवासीय उच्च विद्यालय स्थापित किया गया है। बाद के दिनों में पूर्वी सिंहभूम जिले के उपायुक्त रहे श्रीमती निधि खारे के प्रयास के एवं भारत सेवाश्रम संघ जमशेदपुर के तत्ककालीन अध्यक्ष रहे स्वामी ज्ञानात्मानंंद जी के अथक परिश्रम से यहां 2004 से सबर आदिम जनजाति के लिए गैर- आवासीय विद्यालय, हस्त करघा सह- प्रशिक्षण केन्द्र  तथा कृषिगत प्रशिक्षण केन्द्र संचालित है।  शिक्षा के बारे जब आंकड़े जुटाए तो  यह  भी पता चला कि यहां  कोई भी ऐसा सदस्य नहीं है जो स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली हो। बेशक संघ के प्रयास व सहयोग से कुछ बच्चों ने मैट्रिक की परीक्षा पास की है और दो इंटर पास छात्रों है। ज्ञातव्य है कि झारखंड सरकार में विलुप्त प्राय आदिम जनजाति समुदाय के शिक्षित युवाओं को नौकरी सीधी भर्ती का प्रावधान है। इस लिहाज़ से आवासीय विद्यालय में एक रसोईया और दो आदेशपाल की नियुक्ति की गई है।



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