आदिवासी भूमिज समाज का माघ बुरु बोंगा


आदिवासी भूमिज के पराणिक कथाओं के अनुसार प्राकृतिक जंगलों में आदिवासियों ने विरान जंगलों को काटने के बाद ही माघ -बुरु का नामकरण हुआ। जंगलों के दोहन के कारण उन आदिवासियों के ऊपर जंगल के देवियों ने आक्रमण किया। आक्रमण से बच्चा और जंगलों में शांति ममता से रहने के लिए बाध्यता में जंगल काटने के परिणाम है- माघ- बुरु बोंगा का सृष्टि हुई। जंगल के देवी देवताओं का कहना है कि आप लोग मेरे जंगलों को कांटा है, उसका परिणाम आप लोगों को ही तो झेलना ही पड़ेगा। इसीलिए आदिवासी भूमि समाज के लोग अनादिकाल से माघ- बुरु बोंगा करते आ रहे हैं। आदिवासी भूमि समुदाय की भाषा में इसे माघ-बुरु कहते है।

माघ- बुरु दोनों अलग-अलग शब्द है, इन दोनों शब्दों का अलग-अलग अर्थ भी है। माघ का अर्थ है- जंगल को अपना। दुसरा बुरु का अर्थ है- जंगल। माघ का दुसरा अर्थ है- प्राकृतिक जंगलों के पेड़ों को एक बार पतझड़ होना ही परंपरा नियम है। वही प्राकृतिक मौसम के अनुरूप पतझड़ मौसम भी होती है। उसी को आदिवासी हो भूमिज भाषा में "सेकाम उडुर उक्त़ " कहते हैं। वही है माघ चाडुप यानी माघ माहीना कहते हैं। माघ का तीसरा अर्थ है- मा का अर्थ काटना और घ का अर्थ है- काटकर गिराना। आदिवासियों के अनुरूप प्राकृतिक परम्परा ज्ञान रहा है। उसी के अनुरूप उसी के अनुरूप जब पेड़ों के पत्ते झाड़ जाने के बाद काटने से उस पेड़ कभी भी मरते नहीं है और पानी से सड़ने के फलस्वरूप कटा हुआ पेड़ों से 2 गुना नया पेड़ उगता है।

अनादि काल में आदिवासियों ने वीरान जंगलों के पेड़ झाड़ को काटकर कृषि योग जमीन तैयार कर  गांव बसायाऔर और ग्राम गणराज व्यवस्था की स्थापना किया। उसी क्षेत्र को भौगोलिक सीमांकन भी किया जिसे आदिवासी भूमि भाषा में " चोड़का विद " कहा जाता है।

"चोड़का " आदिवासी भुमिज समाज की " लोकतंत्र " व्यवस्था रहा है। इसका अर्थ यह है, कि आदिवासी ही लोकतंत्र की समझ रखते हैं। जान सकते हैं, गांव की सभ्यता व सांस्कृतिक को समझ सकते हैं। शहरी इस चोड़का की लोकप्रियता लोकतंत्र नहीं समझेंगे। यही ही माघ-बुरु बोंगा और खुंटकटटी परम्परा रहा है। इसी परंपरा के अनुरूप भूमि आदिवासियों के गांव व्यवस्था या स्वशासन व्यवस्था ही खूंटकट्टी माघ- बुरु बोंगा के आधार पर आज तक चलता आ रहा है। यह गांव समाजिक में मान्यता रहा है। इस गांव व्यवस्था को स्वशासन व्यवस्था से संचालन के लिए विशेष परंपरा पद का सृजन हुआ। वह गांव के स्वशासन परंपरा व्यवस्था पद "नाया" देवरी , डाकुवा सामाजिक सांस्कृतिक विरासत के घर पर गांव को सुख दुख में सुरक्षा  में सुरक्षा प्राप्त है।

(स्रोत: सुदर्शन भूमिज) 






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