डॉ. हर्षवर्धन ने जनजातीय स्वास्थ्य सहयोग ‘अनामय’ योजना की शुरुआत की

 


केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा के साथ मिलकर बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जनजातीय स्वास्थ्य सहयोग के लिए अनामय योजना की शुरुआत की। यह कई हितधारकों द्वारा शुरू की गई योजना है, जिसे मुख्य रूप से पीरामल फाउंडेशन और बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन (बीएमजीएफ) का सहयोग मिला है। अनामय’ योजना भारत के जनजातीय समुदाय के स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति में सुधार करने के उद्देश्य से विभिन्न सरकारी एजेंसियों और संगठनों द्वारा किए जा रहे प्रयासों को एक मंच पर लेकर आएगी। 

जनजातीय समुदायों के लिए समग्र स्वास्थ्य सुनिश्चित करने की दिशा में जनजातीय कार्य मंत्रालय के प्रयासों और हाल ही में तपेदिक से लड़ने के लिए किए गए संयुक्त प्रयासों की सराहना करते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, पिछले एक साल में जनजातीय समुदाय की स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने जनजातीय कार्य मंत्रालय के साथ मिलकर संयुक्त रूप से कई प्रयास किए हैं। प्रधानमंत्री ने वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य तय किया है, जो वैश्विक समयसीमा (2030) से पांच वर्ष कम है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए हाल ही में, दोनों मंत्रालयों ने मिलकर जनजातीय टीबी कार्यक्रम की शुरुआत की है।” उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों स्पष्ट अनुरोध किया कि वे टीबी जैसी गंभीर बीमारी पर ध्यान केंद्रित करें, क्योंकि यह एक ऐसी बीमारी है, जिसका सामना भारत दशकों से कर रहा है। उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा कि “हम टीबी के बारे में उसी स्तर पर जागरूकता फैलाना चाहते हैं, जिस स्तर पर हमने कोविड-19 के मामले में लोगों को जागरूक किया है। अगर हम पोलियो और चेचक को खत्म कर सकते हैं तो हम टीबी का भी खात्मा कर सकते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि, आने वाले दिनों में मलेरिया, सिकल सेल, कुपोषण, एनीमिया जैसी गंभीर बीमारियों से भी प्रभावशाली तरीके से निपटा जाएगा। जनजातीय समुदाय इन बीमारियों से व्यापक रूप से प्रभावित है।

केंद्रीय मंत्री ने हमारी आज़ादी के 75 साल का जश्न मनाने के लिए प्रधानमंत्री के न्यू इंडिया के व्यापक दृष्टिकोण का उल्लेख किया और बताया कि न्यू इंडिया के इस पूरे अभ्यास के लिए आदिवासी समुदाय का उत्थान कितना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि यद्यपि भारत ने पिछले एक दशक में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता के मामले में उल्लेखनीय सुधार किया हैलेकिन भौगोलिक और समाज कल्याण के विभिन्न स्तरों पर इसमें समानता नहीं है: पिछले कुछ वर्षों में तमाम सुधारों के बावजूद, जनजातीय आबादी अपने गैर-आदिवासी समकक्षों की तुलना में गरीबीमृत्यु और बीमारियों के बोझ तले दबे हुई है, और सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था का उपयोग करते समय तमाम बाधाओं का सामना करती है। इनमें स्थानीय समुदायों के बीच स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने वालों के साथ सांस्कृतिक अंतर जैसे भाषा के स्तर पर अंतरकर्मचारियों की कमीइलाज के दौरान बुरा बर्तावभौगोलिक कठिनाइयाँ और एक-दूसरे के साथ कम मिलना-जुलना आदि शामिल हैं।


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