ब्रिटिश शासन के बाद संतालों की मांझी- परगना व्यवस्था


संतालों के रीति-रिवाजों, धर्म शास्त्रों, न्याय व्यवस्था तथा दण्ड व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए अंग्रेजों को कुछ मुद्दे पर स्वशासन दिये गये थे, तथा न्याय व्यवस्था में भी मांझी परगानों के कुछ कार्यों को अधिनियम में मान्यता दिया गया था। जो इस प्रकार है:-

यूल्स रुल्स:- अंग्रेजों द्वारा सबसे पहले जो नियम बनाया गया जिससे यूल्स रुल्स कहा गया, इसका वास्तविक नाम संताल पुलिस रुल्स था। और इसे 29 दिसम्बर 1856 ई॰ लागू किया गया था। युल्स रूल ही सबसे मूल और महत्वपूर्ण बात यह थी कि पहली बार संतालो की सामाजिक व्यवस्था को कानूनी मान्यता दी गई, ग्रामीण समुदायों के प्रबंध पूरी जिम्मेदारी मांझी को दी गई, पुलिस और नौकरशाही का हस्तक्षेप कम किया गया। आम जनता सामाजिक अधिकारियों मांझी और पारगाना के शासन व्यवस्था में आ गई।

दैनिक जीवन में बाहरी लोगों द्वारा कम हस्तक्षेप के चलते यह प्रबंधन संतालों को भी पसंद आया। य व्यवस्था बिना रुकावट के तीन दशक तक चला। 1872 ईसवी और 1886 ईस्वी के सेटलमेंट रेगुलेशन माझी परगना प्रथागत अधिकार को ज्यों के त्यों  रखा गया। जो अधिकार पहले से उनके पास था।1880 ईस्वी में यूल्स रुल्स को पुनः शक्ति देने के लिए प्रबंध किया गया।

1880 ई॰ में ए. डल्यू . कासागेंट का प्रबन्ध:-  1880 ई॰ में ए. डल्यू को सरौट ने मांझी परगाना की सामाजिक पदवी को कानूनी मान्यता दी जो इस प्रबन्ध में सबसे महत्वपूर्ण थी। 1855-1856 ई॰ में संतालों ने बड़ा विद्रोह किया था। जिसको संताल हुल के नाम से जाना जाता है। जिसके बाद से संतालो में बहुत अशांति रहा और घर द्वार उजाड़ दिए गए। बहुत सारे मांझीयों को अपने घरों से दुश्मनों ने भगा दिया। 1872 ई॰ के सेटलमेंट रेगुलेशन में लोगों की जमीन में पुनः स्थापित करने का प्रावधान किया गया। जो 1886 ई॰ या इससे पहले से मांझी थे, लेकिन बहुत मांझी इस नियम से बहार हो गये।

परगाना पुरस्कार फण्ड :- इस प्रबंध के अंदर ए. डल्यू  सारांट के पारगान देश मांझी में और माझीयों को प्रथागत कार्य के दीवानी, राजस्व वसूली तथा पुलिस का कार्य भी दिया, इन्हें प्रोत्साहित करने के लिए एक परगाना पुरस्कार फंड स्थापित किया। स्कोर स्थापित करने का उद्देश्य सफल पर गाना को पुरस्कृत करना और अनुशासनहीन को सजा देना था। न्याय विभाग के पत्रांक संख्या 222 दिनांक 31 अगस्त 1895 से बंगाल सरकार के मुख्य सचिव एच.से.एस.कटान ने यह पत्थर जारी किया।

ग्रामीण पुलिस रेगुलेशन 1910: 1910 ई॰ के तहत ग्रामीण पुलिस रेगुलेशन में मांझीओं को आगे अधिक जिम्मेदारी सौंपी गई। जिसमें सरकार के बकाया रकम को वसूलने तथा चौकीदारी और सरदारों पर निगरानी रखना भी था।

मैक फरसन और गेफार सेटेलमेंट कार्यों के अन्तर्गत माफी: हालांकि नए पुलिस रेगुलेशन में गांव में ग्रामीणों को पुलिस प्रशासन के अधिकार से अलग कर दिया गया था। इसके बावजूद भी कालांतर ग्राम समुदाय का अन्य व्यक्ति था व अनुमंडल पदाधिकारी और रेयतों के बीच माध्यम बन कर उस पद पद का उपयोग कर रहा था। संक्षेप में माझी को शुद्ध सरकारी संस्था घोषित किया गया था। वह  ग्रामीणों के बीच विवादों को नियंत्रित करने वाला व्यक्ति था।

संताल परगना इंक्वायरी कमेटी:  22 नवंबर 1937 की सूचना संख्या 4562 के द्वारा संथाल परगना इंक्वायरी कमिटी बनाई गई। इस कमेटी ने भी माझियों के पदवी का परिवर्तन नहीं किया कमेटी ने एकरूपता पुलिस प्रशासन की सिफारिश की। राजस्व प्रशासन को मांझीयों के लिए पूर्णता छोड़ दिया गया।

संताल परगना कश्तकारी अधिनियम 1949:  संताल परगना कश्तकारी अधिनियम 1949 में माझीयों के अधिकार और कर्तव्य को कानूनी कानून के द्वारा अनुमोदित किया गया।इस कानून के तहत मांझीयों की काबिलीयत में पुलिस ड्यूटी भी शामिल हैं।





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